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मुंबई में लौट आया है संगठित अपराधों का दौर?

बाबा सिद्दीकी बांद्रा पश्चिम से विधायक चुने गए थे जो कभी 'उपनगरों की रानीÓ कहलाता था

मुंबई में लौट आया है संगठित अपराधों का दौर?
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- विद्याधर दाते

बाबा सिद्दीकी बांद्रा पश्चिम से विधायक चुने गए थे जो कभी 'उपनगरों की रानी' कहलाता था। बिल्डर इसे एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में देखते हैं और बिल्डरों के बढ़ते दबाव के कारण अब बांद्रा का आकर्षण कम हो रहा है। पूर्व में बहुत सामान्य लोग बांद्रा पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे जिसका एक उदाहरण सदानंद वर्दे हैं जो 1970 के दशक में शिक्षा मंत्री थे।

एक समय था जब मुंबई में दिन-दहाड़े गोलीबारी होती थी, गैंगस्टर खुले आम घूमते थे और शहर की सड़कों पर अपने दुश्मनों को अपनी मर्जी से उड़ा देते थे। दशहरे की रात (12 अक्टूबर) को बांद्रा के टोनी उपनगर में महाराष्ट्र के विवादास्पद पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद लगता है कि कुछ ऐसा ही माहौल वापस आ गया है। सिद्दीकी बॉलीवुड सितारों के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के लिए मशहूर थे। 66 वर्षीय सिद्दीकी को कार में आए हत्यारों ने गोली मारी। हत्यारों के मुंह रूमालों से ढंके हुए थे। अपने लक्ष्य पर करीब से गोली चलाने के बाद वे भाग निकले। पुलिस ने इस वारदात को कॉन्ट्रैक्ट किलर की करतूत बताया है। संगठित अपराध शैली में की गई यह हत्या राजनेता-बिल्डर-अंडरवर्ल्ड गठजोड़ की शक्ति, पहुंच और कानून-व्यवस्था की अवमानना का संकेत देती है, जो भारत के सबसे मशहूर शहर मुंबई के अपराध मुक्त होने के दावे को चुनौती दे रही है।

सिद्दीकी अपनी ग्लैमरस इफ्तार पार्टियों के लिए प्रसिद्ध थे जिनमें बॉलीवुड सितारे शामिल होते थे। वे विशेष रूप से सलमान खान और संजय दत्त जैसे फिल्मी सितारों के साथ अपनी नजदीकियों के लिए जाने जाते थे। सिद्दीकी की हैसियत सिर्फ एक पूर्व विधायक, एक पूर्व मंत्री या बांद्रा पश्चिम उपनगर के प्रतिनिधि से कहीं अधिक थी। वे उस इलाके से थे जहां बॉलीवुड फिल्मी सितारों में से कुछ सबसे बड़े लोगों के घर हैं। 2013 की एक तस्वीर में कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन सदस्य बाबा सिद्दीकी सुपरस्टार सलमान खान और 'किंग खानÓ कहे जाने वाले शाहरुख खान के गलों में हाथ डाले दिखाई दे रहे हैं।

कांग्रेस पार्टी के लंबे समय से सदस्य, पूर्व मंत्री और सिनेस्टार व दिवंगत सांसद सुनील दत्त के सर्वाधिक करीबी सहयोगी रहे सिद्दीकी ने अपने खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की जांच के मद्देनजर इस साल की शुरुआत में पार्टी छोड़ दी थी और फिलहाल भाजपा के साथ महाराष्ट्र में सत्ता में भागीदार अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। उसके बाद ईडी का मामला कभी आगे नहीं बढ़ा। इन अर्थों में जिस व्यक्ति की गोली मारकर हत्या की गई, वह सत्तारूढ़ पार्टी का कार्यकर्ता था, जिसकी हत्या उस समय हुई जब सभी राजनीतिक दल महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए जी-जान से जुटे हैं। उल्लेखनीय है कि बाबा सिद्दीकी को एक पखवाड़े पहले जान से मारने की धमकी मिली थी जिसके बाद उन्हें 'वाईÓ श्रेणी की राज्य सुरक्षा प्रदान की गई थी। इन सबके बावजूद हिटमैन अपना काम कर गुजरे।

सरकारी कहानी यह है कि यह हत्या लॉरेंस बिश्नोई के नेतृत्व वाले गिरोह की करतूत है। हत्या का कारण सिद्दीकी की सलमान खान के साथ कथित नजदीकी को बताया जा रहा है। सलमान खान पर आरोप है कि उसने 1998 में कथित तौर पर एक काले हिरण का शिकार किया था जिसे बिश्नोई समुदाय पवित्र व पूजनीय मानता है। इसी वर्ष अप्रैल में सलमान खान के घर पर गोलियां चलाई गई थीं। इस सिलसिले में गिरफ्तार आरोपियों में से एक अनुज थापन के बारे में कहा जाता है कि उसने पुलिस हिरासत में आत्महत्या कर ली जिसने उस मामले में एक नया मोड़ दे दिया। अब सलमान खान के सभी दोस्त और सहयोगी बिश्नोई गिरोह के निशाने पर हैं, लेकिन सिद्दीकी की हत्या के बाद घटनाक्रम में इतनी तेजी के साथ बदलाव हो रहे हैं जिसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह कम महत्वपूर्ण नहीं है कि बिश्नोई इस समय गुजरात में हिरासत में हैं। इसके अलावा पुलिस ने सिद्दीकी मामले में उसी रात आनन-फानन में दो गिरफ्तारियां कीं और इस समय तक एक और आरोपी को गिरफ्तार कर चुकी है। गिरफ्तार किया गया तीसरा व्यक्ति उस व्यक्ति का भाई है जिसने बिश्नोई गिरोह के गुर्गे के रूप में हत्या में शामिल होने का दावा किया था। क्या मामला इतना सरल हो सकता है जितना कि बताया जा रहा है?

बाबा सिद्दीकी को जमीन और रियल एस्टेट कनेक्शन के लिए भी जाना जाता था जिसने मुंबई में बिल्डरों की भूमिका को उजागर करते हुए शहर का पूरा परिदृश्य बदल दिया और कई मायनों में शहर की तरक्की के साथ मुंबई को कांक्रीट का बदसूरत जंगल बनाने में भी योगदान दिया है। कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण कई इमारतें अधूरी छोड़ दी गईं। रियल एस्टेट में निवेश करने वाले अधिकांश लोगों ने देखा है कि उनके निवेश को आकर्षक रिटर्न नहीं मिलता हैं जैसा किसी समय आवासीय परियोजनाओं में मिलता था। इसके बावजूद मुंबई में भूमि का आकर्षण और रिटर्न देने की इसकी क्षमता हमेशा की तरह आकर्षक है जिसने मुंबई को भारत का सबसे समृद्ध शहर बनाए रखा है। इसके अलावा बाजार की बदलती परिस्थितियों ने बिल्डरों और परियोजनाओं पर भी दबाव डाला है जिनमें से कई की पूरा करने की प्रतिबद्धता हो सकती है पर मुंबई में आवास के लिए विकसित बाजार में व्यवहार्य से कम रिटर्न हो सकते थे।

कुछ मामलों में राजनेता खुद भूमि सौदों और बिल्डरों से करीब से जुड़े हुए हैं जैसा कि बाबा सिद्दीकी कथित तौर पर करते थे या राजनेता खुद बिल्डर हैं, जैसे कि उपनगरीय मुंबई के भारतीय जनता पार्टी के पालक मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा। लोढ़ा और उनका रियल एस्टेट व्यवसाय समूह शायद अकेले ही अपने दबदबे के लिए और मुंबई को नया आकार देने, कीमतों को बढ़ाने, इसे अमीरों के लिए मुफीद बनाने तथा औसत या गरीब निवासियों के प्रति विरोधपूर्ण रवैये के लिए स्पष्ट रूप से जाने जाते हैं।

बाबा सिद्दीकी बांद्रा पश्चिम से विधायक चुने गए थे जो कभी 'उपनगरों की रानीÓ कहलाता था। बिल्डर इसे एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में देखते हैं और बिल्डरों के बढ़ते दबाव के कारण अब बांद्रा का आकर्षण कम हो रहा है। पूर्व में बहुत सामान्य लोग बांद्रा पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे जिसका एक उदाहरण सदानंद वर्दे हैं जो 1970 के दशक में शिक्षा मंत्री थे। वर्दे समाजवादी विचारधारा के थे एवं बांद्रा के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता थे। एक अन्य प्रतिनिधि सलीम जकारिया एक उपनगर में स्कूल शिक्षक थे जो राज्य के शिक्षा मंत्री भी बने। बांद्रा से ताल्लुक रखने वाले एक और शख्स रामदास नायक थे जो मोदी-शाह नेतृत्व से पहले के दिनों से मुंबई भाजपा के नेता थे। अगस्त 1994 में दाऊद इब्राहिम गिरोह के सदस्यों ने एके 47 राइफल से गोलियों की बौछार कर नायक और उनके अंगरक्षक की हत्या कर दी थी।

नायक उस समय 52 साल के थे। बांद्रा में हिल रोड का नाम उनकी याद में रखा गया है। नायक भाजपा की मुंबई इकाई के अध्यक्ष थे और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाले वह व्यक्ति थे जिन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री एआर अंतुले के खिलाफ सीमेंट घोटाले के आरोपों को उजागर करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। नायक ने कुछ बिल्डरों के खिलाफ भी मोर्चा खोला था।

अब तस्वीर बहुत अलग है। मामले सुलझाने के लिए त्वरित प्रस्ताव सामने रखे जाते हैं। मामलों को आसानी से हल हुआ मान लिया जाता है। यह स्थिति लोगों या अधिकारियों को कभी भी मामले की पूरी भयावहता सामने लाने की अनुमति नहीं देगी कि वास्तव में क्या गलत हो रहा है या मामले के सूत्र किसके हाथ में हैं और मुंबई में वापस लौट रहे संगठित अपराधों के पीछे वास्तव में किसका हाथ है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेटऋ: द बिलियन प्रेस)


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