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धर्मोन्मादी राजनीति का नुकसान

भाजपा धर्म और संस्कृति की माला दिन-रात जपती है। उसकी सारी राजनीति ही धार्मिक मुद्दों के इर्द-गिर्द रहती है।

धर्मोन्मादी राजनीति का नुकसान
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भाजपा धर्म और संस्कृति की माला दिन-रात जपती है। उसकी सारी राजनीति ही धार्मिक मुद्दों के इर्द-गिर्द रहती है। अपने फायदे के लिए लोगों में धर्मांधता और धर्मोन्माद जगाने से भी भाजपा को परहेज नहीं है। ऐसा करके भाजपा को तो सत्ता हासिल हो रही है, लेकिन आम जनता का कितना नुकसान होता जा रहा है, इसका ताजा उदाहरण पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा में हुई भगदड़ से सामने आया है। अभी छह महीने नहीं बीते, जब प्रयागराज में महाकुंभ में भारी भगदड़ मची थी। भाजपा सरकार को इस बात का रिकार्ड कायम करना था कि उसके शासनकाल में आयोजित कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की कितनी भीड़ जुट रही है।

रोजाना के आंकड़े सरकार पेश करती थी कि आज इतने करोड़ लोग पहुंचे, आज इतने करोड़ लोगों ने स्नान किया। देश-दुनिया से श्रद्धालु ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंचे, इसके लिए खूब विज्ञापन और प्रचार-प्रसार किया गया। हालांकि भारत में सदियों से धार्मिक आयोजन होते रहे हैं और जिन्हें सच में श्रद्धा होती है, वे अपने आप तीर्थाटन के लिए निकलते ही हैं। किंतु भाजपा के शासनकाल में तीर्थ यात्रा, धार्मिक मेले इन सब में अब श्रद्धा से ज्यादा दिखावे का बोलबाला दिखने लगा है। लोग धार्मिक आयोजनों में बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं और जिन पर व्यवस्था की जिम्मेदारी होती है, उनकी लापरवाही अक्सर जानलेवा साबित हो रही है। महाकुंभ में मची भगदड़ में कई लोग मारे गए और सरकार ने अब तक उनकी सही संख्या नहीं दी है। अब रथयात्रा में भी भगदड़ से कम से कम तीन लोगों की मौत की खबर है।

भारत के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों में से एक पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान रविवार तड़के गुंडिचा मंदिर के पास सराधाबली में भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई। जिसमें तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग घायल हो गए, जिनमें से छह की हालत गंभीर बताई जा रही है। रथ यात्रा के तीसरे दिन, जब रथ गुंडिचा मंदिर के पास था, तब भारी भीड़ ने दर्शन के लिए धक्का-मुक्की शुरू कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, स्थिति तब और बिगड़ गई जब दो ट्रक, जिनमें रस्मों के लिए सामग्री लादी गई थी, भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में प्रवेश कर गए, जिससे अफरातफरी मच गई। बताया जा रहा है कि जब यह हादसा हुआ, तब न अग्निशमन अधिकारी, न ही बचाव दल, और न ही अस्पताल की टीम ने तत्काल मदद की। वहां मौजूद लोगों के मुताबिक भीड़ प्रबंधन की व्यवस्था बेहद खराब थी। फिलहाल जिला प्रशासन का कहना है कि पीड़ितों को फौरन अस्पताल में भर्ती कराया गया और गंभीर रूप से घायल लोगों का इलाज चल रहा है। लेकिन अब इस पर सियासी बयानबाजी भी शुरु हो चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इस हादसे को सरकार की 'घोर अक्षमता' का परिणाम बताया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'यह भगदड़, जो रथ यात्रा के दौरान भीड़ प्रबंधन की विफलता के ठीक एक दिन बाद हुई, सरकार की नाकामी को उजागर करती है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, इस हादसे में प्रारंभिक मदद श्रद्धालुओं के परिजनों से मिली, सरकारी मशीनरी पूरी तरह अनुपस्थित थी।'

बता दें कि इससे पहले 27 जून को भी रथ यात्रा के दौरान गजपति राजा के महल के पास श्री नहर क्षेत्र में भगदड़ जैसी स्थिति में 40 से अधिक श्रद्धालु बेहोश हो गए थे और उन्हें पुरी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। इसी दिन एक अन्य हादसे में, तलध्वज रथ (भगवान बलभद्र का रथ) को खींचने के दौरान भारी भीड़ के कारण 500 से अधिक श्रद्धालु घायल हो गए थे, जिनमें से आठ की हालत गंभीर थी। इस घटना ने भी प्रशासन की तैयारियों पर सवाल उठाए थे।

जब दो-तीन दिनों में ऐसी घटनाएं हो चुकी थीं, जिनमें गंभीर नुकसान हो सकता था, तो फिर सरकार और प्रशासन सचेत क्यों नहीं हुए, ये बड़ा सवाल है।

भाजपा अब भी अपनी जिम्मेदारी से ज्यादा विपक्ष पर हमला बोलने में लगी है। नवीन पटनायक ने कुप्रबंधन पर ध्यान दिलाया तो अब ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने पटनायक का नाम लिए बिना पूर्ववर्ती बीजद सरकार पर कुप्रबंधन का आरोप लगाया और कहा कि 1977 से रथ यात्रा की प्रक्रिया में कोई रुकावट नहीं आई थी। हालांकि मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और मंत्री मुकेश महालिंग ने जनता से माफी मांगी है। उन्होंने एक्स पर ट्वीट में कहा- 'व्यक्तिगत रूप से, मेरी सरकार और मैं सभी जगन्नाथ भक्तों से क्षमा मांगते हैं। हम अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं... यह लापरवाही अक्षम्य है। सुरक्षा चूक की तत्काल जांच की जाएगी। मैंने निर्देश दिया है कि जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।'

अब सोचने वाली बात यह है कि जब मुख्यमंत्री खुद इस लापरवाही को अक्षम्य मान रहे हैं, तो क्या जगन्नाथ भक्तों से माफी मांगने के साथ-साथ वे अपने पद से इस्तीफा देने का नैतिक साहस दिखा पाएंगे। क्योंकि जो भगदड़ हुई है, वह सरासर लापरवाही का ही नतीजा है। पुरी जिला प्रशासन और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने स्वीकार किया कि इस साल की भारी भीड़ को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण था। लगभग 10,000 पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की तैनाती के बावजूद, भीड़ की भारी संख्या के सामने व्यवस्था चरमरा गई। प्रशासन ने भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए बेहतर सुरक्षा उपायों और भीड़ प्रबंधन की योजना बनाने का वादा किया है। मुख्यमंत्री ने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं ताकि हादसे के कारणों का पता लगाया जा सके और भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके।

जहां लाखों की भीड़ आई हो, वहां केवल दस हजार जवानों से व्यवस्था कैसे संभाली जा सकती थी। जाहिर है भाजपा ने एक बार फिर आम आदमी की जान को बहुत हल्के में लिया है। इसमें जान का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कोई मुआवजा नहीं कर पाएगा। वहीं विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा की भव्यता पर भी भाजपा ने दाग लगाया है। पुरी की जगन्नाथ यात्रा दुनिया भर में मशहूर है। इसकी भव्यता और विराटता की मिसालें दी जाती हैं। यहां तक कि अंग्रेजी का शब्द जगरनॉट भी जगन्नाथ रथयात्रा से उपजा है, जिसका अर्थ है एक ऐसी शक्ति जिसे रोका नहीं जा सकता। लेकिन इस हादसे ने रथ यात्रा की भव्यता पर गहरी चोट पहुंचाई है, जिसके लिए सिर्फ और सिर्फ भाजपा जिम्मेदार है।


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