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पुरानी टीम में आधे भाजपा के : क्या इन्हीं के साथ अहमदाबाद अधिवेशन होगा?

क्या कांग्रेस ऐसे ही आधे संघियों को लेकर अहमदाबाद अपने पूर्ण अधिवेशन (प्लेनरी) में पहुंच जाएगी? अगले माह अप्रैल में होना है

पुरानी टीम में आधे भाजपा के : क्या इन्हीं के साथ अहमदाबाद अधिवेशन होगा?
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- शकील अख्तर

गुजरात के बाहर के कांग्रेसी नेता चिंतित नहीं हैं। उनका कहना है कि राहुल गांधी ने यह केवल गुजरात के लिए कहा है। हरियाणा के लिए नहीं, राजस्थान के लिए नहीं। जहां के कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा से मिलकर जीते हुए विधानसभा चुनाव हरवा दिए। कांग्रेस मुख्यालय में दूसरे लोगों के लिए नहीं।

क्या कांग्रेस ऐसे ही आधे संघियों को लेकर अहमदाबाद अपने पूर्ण अधिवेशन (प्लेनरी) में पहुंच जाएगी? अगले माह अप्रैल में होना है। 8 और 9 तारीख को उसी अहमदाबाद में जहां राहुल ने कहा कि पार्टी में पचास प्रतिशत लोग भाजपा के भरे पड़े हैं। इनके दिल में और खून में कांग्रेस नहीं है। ये कांग्रेस में रहकर भाजपा का काम कर रहे हैं।

बहुत स्पष्ट भाषण था राहुल का। शनिवार 8 मार्च को अहमदाबाद में। कार्यकर्तओं से बात करते हुए। कार्यकर्ता बहुत खुश हुए। दिल से तालियां पीटीं। जो बात वे हमेशा से कह रहे थे वह राहुल ने कह दी। एकदम साफ शब्दों में। कोई इसे हल्का नहीं कर सकता। दूसरा अर्थ नहीं निकाल सकता।
गुजरात के बाहर के कांग्रेसी नेता चिंतित नहीं हैं। उनका कहना है कि राहुल गांधी ने यह केवल गुजरात के लिए कहा है। हरियाणा के लिए नहीं, राजस्थान के लिए नहीं। जहां के कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा से मिलकर जीते हुए विधानसभा चुनाव हरवा दिए। कांग्रेस मुख्यालय में दूसरे लोगों के लिए नहीं जो कांग्रेस में बैठकर राहुल को गालियां देते हैं और मोदी की तारीफ करते हैं।

गुजरात के बाहर के लोगों की बात सुनकर ऐसा लगता है कि उन्हें भाजपा के साथ मिले रहने की छूट है। राहुल एक काम करें कि कांग्रेस मुख्यालय में एक पोलिंग बूथ बनवा लें। तो उन्हें मालूम पड़ जाएगा कि जो आधे बीजेपी वाले कह रहे थे उससे बहुत ज्यादा हैं।

कांग्रेस में संघ की यह घुसपैठ आज की नहीं है बहुत पहले से है। और उस समय स्वाभाविक थी। आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली पार्टी थी। सब विचारों के लोग आते थे। ज्यादातर अंग्रेजों से लड़ने के लिए मगर कई कांग्रेस में घुसकर नेहरू-गांधी को कमजोर करने के लिए। अंग्रेजों को फायदा पहुंचाने के लिए। मगर नेहरू नियंत्रण रखते थे। सरदार पटेल ने आरएसएस पर पाबंदी लगाई। और कहा कि अगर आपके अंदर राष्ट्रप्रेम है तो कांग्रेस के साथ मिलकर काम कीजिए। बाद में इन्दिरा गांधी ने भी पहचाना और इन्हें अलग थलग करने के लिए अलग कांग्रेस ही बना दी। मगर उनके बाद पार्टी में विचार पूरी तरह खत्म हो गए। और दक्षिणपंथी, साम्प्रादायिक, दलित, पिछड़ा विरोधी लोग छा गए।

अब राहुल ने पहली बार इतने साफ शब्दों में पार्टी की असली सूरत सबके सामने रख दी। और अब अगर खुद राहुल भी यह कहें कि उन्होंने सिर्फ गुजरात के नेताओं के लिए कहा था तो कोई यकीन नहीं करेगा। पार्टी और कमजोर हो जाएगी। राहुल भी डर से अपनी बात से पलट रहे हैं यह खराब मैसेज पार्टी कार्यकर्ताओं तक चला जाएगा।
इसलिए अब राहुल के पास कोई रास्ता नहीं है। उन्हें पार्टी का पुनर्निर्माण करना ही होगा। अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे यह बात पहले ही कह चुके हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कब? खरगे को अध्यक्ष बने ढाई साल हो गए। मतलब नए नियमों के मुताबिक आधा कार्यकाल। अगर संशोधन नहीं होता पुरानी समयावधि रहती तो बिना संगठन में कुछ किए उनका कार्यकाल खत्म होने वाला होता। 2010 के संविधान संशोधन से पहले अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का ही होता था तो खरगे के लिए कुछ करना बहुत जरूरी है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी उनके साथ हैं। फिर देर क्यों?

यही एक सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। प्रियंका गांधी लंबे समय से बिना किसी जिम्मेदारी के महासचिव हैं। अगर कांग्रेस प्रियंका को करिश्माई नेता मानती है तो उन्हें कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने में देर क्यों कर रही है? कोई जवाब नहीं!

अब सबसे बड़ा सवाल। क्या पार्टी के पूर्ण अधिवेशन ( प्लेनरी) से बड़ा कोई जलसा होता है? हर तीन साल में यह होता है। एआईसीसी के सदस्य इसमें भाग लेते हैं। जिनकी संख्या अब तो हजारों में हो गई मगर कभी चार सौ-पांच सौ के आसपास होती थी। बड़ी सम्मानजनक चीज मानी जाती थी। लोग अपने नाम के साथ लगाते थे- एआईसीसी मेंबर।

तो इस पूर्ण अधिवेशन की तैयारियां बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं। अब तो कांग्रेस के मुख्यालय में लायब्रेरी खतम हो गई। पहले हर पूर्ण अधिवेशन की कार्रवाई का रिकार्ड छपा हुआ वहीं होता था। कौन-कौन से प्रस्ताव पास किए गए। पार्टी के आगे के दिशा क्या है? कौन-कौन शामिल हुए? विदेशी प्रतिनिधि भी आते थे। कांग्रेस अध्यक्ष का भाषण। जिस पर अन्तरराष्ट्रीय निगाहें भी होती थीं। विदेश नीति पर प्रस्ताव पारित होता था। आर्थिक राजनीतिक प्रस्ताव। और हर अधिवेशन की 150-200 पेज की पूर्ण कार्रवाई प्रकाशित होती थी। यह 86वां अधिवेशन है। अगर अब पत्रकार शोध छात्र राजनीतिक लेखक पुराने अधिवेशनों के बारे में पढ़ना चाहें तो मुश्किल हो जाएगा। अकबर रोड स्थित मुख्यालय में लायब्रेरी खतम कर दी। बहुत साल पहले ही। 15 साल हो गए होंगे। बहुत किताबें रिफरेन्स के लिए थीं। लोग दूर-दूर से नोट्स लेने पढ़ने जानने आते थे।

अब कहते हैं कि कोटला रोड पर बनाए नए आफिस में लायब्रेरी बनाएंगे। एक, कि लायब्रेरी एक दिन में नहीं बनती है। किसी भी संस्थान की प्रतिष्ठा इससे मालूम पड़ती है कि उसकी लायब्रेरी कितनी पुरानी है। वह अद्यतन अपडेट होती रहती है। दूसरी बात, वहां पत्रकार और दूसरे विजिटर्स की वैसी पहुंच नहीं है। जैसी अकबर रोड के मुख्यालय में है। तो लायब्रेरी वहां कितनी उपयोगी होगी कहना मुश्किल है।

खैर तो तैयारियों के सिलसिले की बात हो रही थी। तो सवाल यह है कि कर कौन रहा है? वही पुराने पदाधिकारी! तो अगर उनको इतने महत्वपूर्ण काम में लगा रखा है तो फिर वहीं रहेंगे। अगर ऐसा है तो फिर अनाउंस कर देना चाहिए। और अगर नए लगाना है तो फौरन लिस्ट निकालना चाहिए। अब बचा तो एक महीने से कम है। मगर फिर भी तैयारी में शामिल हो सकते हैं।

कांग्रेस में कहा गया है यह 2025 संगठन का साल है। ठीक! मगर कब? जाते हुए 2025 में! तब तो बिहार चुनाव आ जाएंगे। एक ठोस बहाना। राहुल के कहने के बाद तत्काल करना चाहिए।

आज राहुल कांग्रेस में पूरी तरह ताकत में हैं। कोई चुनौती नहीं। अध्यक्ष खरगे के साथ उनका तालमेल बहुत अच्छा है। दोनों मिलकर कुछ भी करेंगे कोई सवाल उठाने वाला नहीं। क्योंकि कार्यकर्ता और जनता भी राहुल और खरगे के साथ हैं। कोई बड़ा नेता ऐसा नहीं है जो विद्रोह कर सके। जैसा इन्दिरा जी के, राजीव गांधी के खिलाफ किया था।

फिर भी अगर राहुल और खरगे कुछ नहीं कर पाते हैं तो दोष किसका? दोनों नेताओं ने पार्टी की हर समस्या कमजोरी के बारे में खुलकर बात की है। तो फिर इन्हें दूर कौन करेगा? और कब?

अभी संगठन में मामूली बदलाव हुआ है। 2 महासचिव और 9 इन्चार्ज नए बनाए। कुछ को विश्राम दिया गया। मगर 20 -22 से ज्यादा महासचिव और राज्यों के इन्चार्ज पुराने हैं। अभी अध्यक्ष ने एक मीटिंग बुलाई। 11 नए और 19 पुराने। जिनमें कुछ पुराने आए नहीं थे। बाकी राज्यों के अध्यक्ष जो सब प्लेनरी में जाएंगे पुराने होंगे। उनके राज्यों के एआईसीसी मेंबर भी पुराने होंगे। डिपार्टमेंटों के हेड भी पुराने होंगे।

क्या मतलब है? इन्हीं को रखना है। रखिए। एक कांग्रेस के महासिचव थे। कहते थे हमारी कांग्रेस है। हम जो चाहे करें। आपको क्या? पूरा भट्टा बिठा कर गए। उसके बाद पार्टी उठ ही नहीं पाई। अभी शुक्र है कोई इस भाषा में नहीं बोल रहा। मगर हां गुटबाजी करने वाले, भाजपा की मदद करने वाले महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए हैं। राहुल और खरगे को सब मालूम है। लेकिन करते क्यों नहीं है और करते नहीं हैं तो बोलते क्यों हैं? यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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