ललित सुरजन की कलम से—स्मार्ट सिटी : शहर और सपना
सेमिनार देश की एक प्रतिष्ठित पत्रिका है। इसमें हर माह किसी एक विषय पर केन्द्रित विद्वतापूर्ण लेख प्रकाशित होते हैं।

सेमिनार देश की एक प्रतिष्ठित पत्रिका है। इसमें हर माह किसी एक विषय पर केन्द्रित विद्वतापूर्ण लेख प्रकाशित होते हैं। इस पत्रिका का जून अंक मेरे सामने है, जो बंगलुरु की दुर्दशा पर केन्द्रित है। पत्रिका ने शीर्षक में ही कटाक्ष किया है- 'बैंगलोर्स ग्रेट ट्रांसफार्मेशन' याने 'बंगलोर का अपूर्व कायाकल्प'। ध्यान दीजिए कि सेमिनार ने सरकारी नाम बंगलुरु के बजाय जबान पर चढ़े प्रचलित नाम बंगलोर का ही प्रयोग किया है। संदेश साफ है कि नाम बदल देने से किसी स्थान की किस्मत नहीं बदल जाती। इस संदर्भ में ताजा उदाहरण गुड़गांव का है। किसी जमाने में गुड़ की मंडी थी तब उसका नाम बदलना किसी को नहीं सूझा। कारपोरेट के चमचमाते दफ्तर खुल गए, आलीशान इमारतें खड़ी हो गईं, अभिजात कालोनियां बन गईं तो नीति-निर्माताओं को गुरु द्रोणाचार्य याद आ गए और देहाती नाम वाले गुड़गांव का नामकरण संस्कृतनिष्ठ गुरुग्राम हो गया। हरियाणा सरकार को ध्यान नहीं रहा कि द्रोणाचार्य महाभारत में धर्मराज नहीं, कौरवों के साथ थे। जो भी हो, नाम बदलने के बाद भी गुड़गांव स्मार्ट सिटी तो नहीं बन पाया। वहां की अव्यवस्था के किस्से आए दिन सुनने मिलते हैं।
(देशबंधु में 03 अगस्त 2017 प्रकाशित)
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