ललित सुरजन की कलम से- गीता किसने लिखी?
'प्रो. मेघनाद देसाई लगभग चालीस साल तक लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स में प्रोफेसर रहे हैं तथा ब्रिटिश संसद के उच्च सदन याने हाउस ऑफ लॉर्ड्स के भी सदस्य हैं

'प्रो. मेघनाद देसाई लगभग चालीस साल तक लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स में प्रोफेसर रहे हैं तथा ब्रिटिश संसद के उच्च सदन याने हाउस ऑफ लॉर्ड्स के भी सदस्य हैं। भारतीय इतिहास और संस्कृति पर कुछेक कार्यक्रमों में भाग लेते हुए उन्होंने अनुभव किया कि गीता का समदृष्टि विवेचन किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में वे अनेकानेक विद्वानों के विचारों से रूबरू होते हैं और फिर अपने निष्कर्ष निकालते हैं। उनकी एक स्थापना तो यह है कि प्राचीनकाल में आदि शंकराचार्य के पूर्व गीता का उल्लेख बहुत कम मिलता है।
शंकराचार्य के एक शताब्दी पूर्व बाणभट्ट की कादंबरी में गीता का उल्लेख अवश्य है यद्यपि उसके दो अर्थ निकाले जाते हैं, जिनमें एक यह है कि महाभारत में अर्जुन को अनंत गीता सुनकर आत्मिक आनंद मिला था। इसी तरह कालिदास के रघुवंश एवं कुमारसंभव में भी गीता का उल्लेख है तो लेकिन पूरी तरह से प्रमाणित नहीं।महान चीनी यात्री शुआन जांग (ह्वेनसांग) ने सातवीं शताब्दी के अपने यात्रा वृत्तांत में एक ऐसी कथा का उल्लेख किया है जो गीता प्रसंग से मिलती-जुलती है। कुल मिलाकर इस ग्रंथ का विधिवत और नियमित अध्ययन व टीका का काम शंकराचार्य से प्रारंभ होता है। पुराने आचार्यों ने इसे भक्त को सुनाई देववाणी की बजाय एक दार्शनिक विमर्श के धरातल पर ही देखा है।'
'प्रो. देसाई कहते हैं कि अधिकतर टीकाएं अभिजात समाज के लिए थीं जो संस्कृत जान-समझ सकते थे। तेरहवीं सदी में संत ज्ञानेश्वर ने मराठी अनुवाद कर इसे पहले-पहल आमजन के लिए उपलब्ध कराया यद्यपि उस समय भी दलित-वंचित जन इसे प्रवचन स्थल के बाहर बैठकर ही सुन सकते थे। आगे चलकर अकबर के नवरत्नों में एक फैज़ी ने गीता का फारसी में अनुवाद किया एवं अंग्रेजी राज में सबसे पहले वायसराय वारेन हेस्टिंग्स ने चार्ल्स विलकिंस से इसका हिन्दी अनुवाद कराया।'
(अक्षर पर्व मार्च 2014 अंक में प्रकाशित)https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/03/blog-post_10.html


