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ललित सुरजन की कलम से- जनतांत्रिक शक्तियों की विजय

'आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार अब तक कोई कमाल नहीं कर पाई है। दाल और प्याज की कीमतें जिस तरह बढ़ी हैं उससे हर नागरिक परेशान और चिंतित है

ललित सुरजन की कलम से- जनतांत्रिक शक्तियों की विजय
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'आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार अब तक कोई कमाल नहीं कर पाई है। दाल और प्याज की कीमतें जिस तरह बढ़ी हैं उससे हर नागरिक परेशान और चिंतित है। जो स्वदेशी उद्योगपति नरेन्द्र मोदी के अंधसमर्थक थे उनका भी मोह भंग होने लगा है जो अभी नारायण मूर्ति व किरण मजूमदार शॉ के वक्तव्यों से प्रकट हुआ। जिन विदेशी उद्यमियों व निवेशकों ने नरेन्द्र मोदी पर दांव लगाया था वे भी स्वयं को ठगा गया महसूस कर रहे हैं।

रेटिंग एजेंसी मूडी की रिपोर्ट चावल का दाना है। विदेश नीति में इस सरकार की असफलता अब दिखाई देने लगी है। नेपाल के साथ संबंध बिगड़ते हैं तो उसका सबसे पहले प्रभाव बिहार पर ही पड़ता है। इस बात को सरकार ने सही ढंग से नहीं समझा। अब जानकार लोग कहने लगे हैं कि अगर विश्व बाजार में तेल की कीमतें न गिरी होतीं तो भारत की अर्थव्यवस्था का न जाने क्या हाल होता।ठ

'ऐसी और बहुत सी बातें हैं जो जनता के मन में उमड़-घुमड़ रही हैं। अगर नरेन्द्र मोदी अपने आपको एक सफल प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं तो सबसे पहले उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री होने की मानसिकता से निकलना होगा। उन्हें संघ का स्वयंसेवक होने का गर्व भी छोडऩा होगा।
(देशबन्धु में 09 नवंबर 2015 को प्रकाशित विशेष सम्पादकीय)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/11/blog-post_8.html


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