ललित सुरजन की कलम से- शेक्सपियर
मैंने पहले भी लिखा है कि एक बार परसाई जी ने मुझसे कहा था कि अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू में क्रमश: शेक्सपियर, तुलसीदास और मिर्जा गालिब ये तीनों महान लेखक हैं

मैंने पहले भी लिखा है कि एक बार परसाई जी ने मुझसे कहा था कि अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू में क्रमश: शेक्सपियर, तुलसीदास और मिर्जा गालिब ये तीनों महान लेखक हैं, क्योंकि इनकी रचनाओं में जैसा जीवन विवेक है वैसा अन्यत्र नहीं है।
परसाई जी की यह बात मुझे समय-समय पर याद आ जाती है। आज जबकि दुनिया बहुत बदल चुकी है, फिर भी ऐसे मौके बारंबार हमारे सामने आते हैं जब इन तीनों लेखकों की कोई न कोई उक्ति सहसा मानस पटल पर कौंध जाती है कि अरे, ऐसा तो उन्होंने कहा था।
मसलन जब बाजारवाद की बात चलती है जो कि आजकल अक्सर होती है, तो गालिब का शेर याद आ ही जाता है- 'बाजार से निकला हूं खरीदार नहीं हूं' इसी तरह कभी तुलसी, तो कभी शेक्सपियर हमारी विचारयात्रा में साथ आ जाते हैं बल्कि यह कहना सही होगा कि वे हरदम हमारे संग चलते हैं।
क्लासिक साहित्य में सबसे बड़ी खूबी यही है कि वह देशकाल की सीमाओं का अतिक्रमण करता है और हर युग में हर पीढ़ी के पाठक के साथ उसका एक अटूट रिश्ता बना रहता है।
(अक्षर पर्व जून 2014 में प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/06/blog-post_16.html


