ललित सुरजन की कलम से - सिद्धांत बनाम पद
1976 में जब इंदिराजी ने लोकसभा का कार्यकाल एक साल बढ़ाया तब उसे अनैतिक एवं असंवैधानिक करार देते हुए दो संसद सदस्यों ने बिना समय गंवाए लोकसभा की सदस्यता त्याग दी थी

'1976 में जब इंदिराजी ने लोकसभा का कार्यकाल एक साल बढ़ाया तब उसे अनैतिक एवं असंवैधानिक करार देते हुए दो संसद सदस्यों ने बिना समय गंवाए लोकसभा की सदस्यता त्याग दी थी। एक थे- मधु लिमए और दूसरे शरद यादव।
मधुजी दुर्भाग्य से हमारे बीच नहीं हैं, किंतु शरद यादव वर्तमान में वरिष्ठतम सांसदों में से एक हैं। वे देश में संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार के नाते 1975 में जबलपुर से चुने गए थे। उन्होंने पचास साल सांसद रहे सेठ गोविंददास की मृत्यु के बाद संपन्न उपचुनाव में उनके पौत्र रविमोहन को पराजित किया था। एक युवानेता के रूप में शरद के मन में लालच हो सकता था कि एक साल का बढ़ा हुआ कार्यकाल सेंत-मेंत में मिल रहा है, इसे क्यों छोड़ा जाए, किंतु उन्होंने संसदीय व्यवहार व परंपरा को निजी लाभ से ऊपर रखकर एक आदर्श प्रस्तुत किया। आगे शरद यादव वाजपेयी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री भी बने।
लेकिन उन्होंने विदेशयात्रा का मोह कभी नहीं पाला। अभी हाल में शायद वे मात्र एक बार चीन की संक्षिप्त यात्रा पर गए।'
(देशबन्धु में 16 जुलाई 2015 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/07/blog-post_15.html


