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ललित सुरजन की कलम से- वर्तमान समय और प्रगतिशील आंदोलन

सोवियत संघ का विघटन, बर्लिन दीवार का टूटना, जर्मनी का एकीकरण, मार्ग्रेट थैचर व रोनाल्ड रीगन की आर्थिक नीतियां- ये कुछ ऐसे कारक तत्व थे जिनका प्रभाव भारत सहित विश्व के अनेक देशों पर धीरे-धीरे कर पडऩा शुरू हुआ

ललित सुरजन की कलम से- वर्तमान समय और प्रगतिशील आंदोलन
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'सोवियत संघ का विघटन, बर्लिन दीवार का टूटना, जर्मनी का एकीकरण, मार्ग्रेट थैचर व रोनाल्ड रीगन की आर्थिक नीतियां- ये कुछ ऐसे कारक तत्व थे जिनका प्रभाव भारत सहित विश्व के अनेक देशों पर धीरे-धीरे कर पडऩा शुरू हुआ तथा जिसकी निष्पत्ति हम आज देख रहे हैं।

अतीत में एक सीढ़ी और नीचे उतरें तो नेहरू युग की समाप्ति को भी एक युगांतरकारी मोड़ के रूप में देखा जा सकता है। मैं आपको कुछ और पीछे ले चलना चाहता हूं। 1947 में देश का आज़ाद होना एक बहुत बड़ी घटना थी जिसने तीसरी दुनिया के तमाम अन्य मुल्कों को प्रेरणा दी व उनकी अपनी आज़ादी की लड़ाई को धार देने का काम किया; लेकिन इसके समानांतर भारत का विभाजन होना भी उतनी ही महत्वपूर्ण दूसरी घटना थी।

आज यह विचार करने की आवश्यकता है कि जब दक्षिण एशिया में धर्म पर आधारित एक नए देश याने पाकिस्तान की स्थापना हुई ठीक उसी समय पश्चिम एशिया में धर्म पर आधारित एक दूसरे देश याने इजराइल की स्थापना भी हुई।'

'भारत में ऐसे विद्वतजनों की कमी नहीं है जो पाकिस्तान निर्माण के लिए गांधी-नेहरू को दोषी ठहराते हैं। उन्हें यह सवाल स्वयं से पूछना चाहिए कि फिलिस्तीन को खत्म कर इजरायल की स्थापना का दोषी कौन था।'

(अक्षर पर्व अक्टूबर 2015 अंक की प्रस्तावना)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/10/blog-post_5.html


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