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ललित सुरजन की कलम से - कविता : शांतिदूत की आँखों से
हम देख रहे हैं जंगल की पनाहगाह से जहाँ बारहसिंगे अपने सींग उतार कर धर देते हैं

जोसेफ ब्रूचाक
(अमेरिकन मूलनिवासी कवि)
हम देख रहे हैं
जंगल की पनाहगाह से
जहाँ बारहसिंगे अपने सींग
उतार कर धर देते हैं कि
किसी को
धोखे से भी चोट न लगे,
वहां जहां पुरखिन चट्टान की
सुलगती आँखों में
अगिन का वास था जिसके
ताप में हमने स्वयं को पवित्र किया,
अपने तमाम रिश्तों को निभाने के लिए,
और प्रार्थना की
सभी जीवित जनों के लिए,
कि सब हिल-मिल कर रहें
कि सब रहें सलामत।
अंग्रेजी से रुपांतर : ललित सुरजन
13.04.2009
https://lalitsurjan.blogspot.com/2020/07/blog-post_15.html
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