ललित सुरजन की कलम से- एक हाथ से ताली नहीं बजती
'किसी भी देश के विकास में उद्योगों का अपना महत्व है। उनके बिना आर्थिक तरक्की की कल्पना नहीं की जा सकती

'किसी भी देश के विकास में उद्योगों का अपना महत्व है। उनके बिना आर्थिक तरक्की की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन हर देश में कुछ नियम कानून भी होते हैं, जिनका पालन अनिवार्य रूप से करना होता है।
अमेरिका में एनरॉन कंपनी ने कानून तोड़े तो कंपनी तो बंद हुई ही, उसके प्रवर्तकों को जेल भी जाना पड़ा। अमेरिका के अलावा अन्य पूंजीवादी देशों में भी कानून तोड़ने वाले उद्योगों के खिलाफ यथासमय कार्रवाई होती है, फिर भारत को ही इसका अपवाद क्यों बनाया जाए? हम तो समझते हैं कि फिक्की, एसोचेम, सीआईआई जैसे व्यापारिक संघों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने सदस्य प्रतिष्ठानों को देश के कानूनों का पालन करने प्रेरित करें और वे अगर कानून तोड़ें तो उनकी सदस्यता खत्म कर दें। हम यह न भूलें कि सरकार जब नियम और नीतियां बनाती हैं तो बहुत कुछ तो उद्योग-जगत से पूछकर ही तय किया जाता है।'
'आज जब कारपोरेट भारत कुमार मंगलम बिड़ला पर संभावित कार्रवाई को लेकर इतना चिंतित है तब उसे यह भी याद रखना चाहिए कि अपने चैनलों और अखबारों के माध्यम से उसने कांग्रेस व यूपीए नेताओं पर राजनैतिक ही नहीं, व्यक्तिगत तौर पर भी कितने बेबुनियाद आरोप लगाए हैं और राजनेताओं की छवि धूमिल करने का उपक्रम किया है।
प्रधानमंत्री ने तो बिड़ला प्रकरण में अपने ऊपर जिम्मेदारी ले ली है और एक तरह से श्री बिड़ला को आरोप से बरी कर दिया है। क्या कारपोरेट इंडिया में यह साहस है कि वह प्रधानमंत्री से कहे कि आपके ऊपर हमने जो निराधार आरोप लगाए वे हम वापिस लेते हैं?'
(देशबन्धु में 24 अक्टूबर 2013 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/10/blog-post_23.html


