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ललित सुरजन की कलम से- नया साल और नौजवान

'यह सोचना शायद गलत नहीं है कि हमारे वर्ग-विभाजित समाज में खाई लगातार बढ़ रही है और उसका सीधा असर युवजनों पर पड़ रहा है

ललित सुरजन की कलम से- नया साल और नौजवान
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'यह सोचना शायद गलत नहीं है कि हमारे वर्ग-विभाजित समाज में खाई लगातार बढ़ रही है और उसका सीधा असर युवजनों पर पड़ रहा है। हमने युवाओं के लिए ऐसे तमाम साधन जुटा लिए हैं जिनमें मशगूल रहते हुए वे अपने समय की सच्चाईयों से कट जाएं।

दूसरी तरफ वे व्यवस्थाएं भ्रष्ट या नष्ट कर दी गई हैं जहां युवा पीढ़ी एक मंच पर आकर एक-दूसरे से रूबरू हो सके और परस्पर समझ विकसित कर सके। इस बात को यूं समझा जा सकता है कि पिछले तीस-चालीस साल में देश में कोई बड़ा छात्र आन्दोलन नहीं हुआ। जिन छात्रसंघों के माध्यम से नवयुवा आगे आते थे उनको निष्प्रभावी बनाने के लिए हर संभव कोशिश की गई है। राजनीतिक दलों के भी जो छात्र अथवा युवा संगठन हैं उनमें भी वैचारिक आधार पर चर्चाएं नहीं होतीं, बल्कि अराजक वातावरण निर्मित करने के लिए नौजवानों को उकसाया जाता है।'

'यह स्थिति भविष्य के प्रति चिंता उपजाती है। हम जानते हैं कि वर्चस्ववादी ताकतें युवाओं को भरमाने के लिए नित नए उपाय करती रहेंगी। यह तो खुद नयी पीढ़ी के सोचने की बात है कि वह मृगमरीचिका के पीछे न दौड़े। जिन्हें वोट देने का अधिकार मिल चुका है उनसे इस समझदारी की अपेक्षा तो करना ही चाहिए। हम भरोसा करना चाहते हैं कि आज नहीं तो कल देश के नौजवान वस्तुस्थिति को समझेंगे और मिल-जुल कर एक नया समाज बनाने के लिए अग्रसर होंगे। इन्हीं विचारों के साथ नौजवानों को 2015 की शुभकामनाएं।'

(देशबन्धु सम्पादकीय 1 जनवरी 2015)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/12/blog-post_31.html


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