ललित सुरजन की कलम से- नवसाम्राज्यवाद, विदेश मोह और लेखक
'यदि देश में एक नया विदेशोन्मुखी अथवा मुख्यत: पश्चिम से प्रभाव ग्रहण करने वाला वर्ग तैयार हो रहा था

'यदि देश में एक नया विदेशोन्मुखी अथवा मुख्यत: पश्चिम से प्रभाव ग्रहण करने वाला वर्ग तैयार हो रहा था, तो लेखक समुदाय भी सात समंदर पार के आकर्षण से अछूता नहीं बचा था। एक बार किसी तरह विदेश यात्रा का मौका मिल जाए, फॉरेन रिटर्न कहला सकें, यह लालसा काफी बलवती थी और इसके लिए कितने सारे लेखक, चाहे जितने पापड़ बेलना पड़े, तैयार रहते थे।
यह एक समय विशेष का प्रभाव था कि दबाव जिसके लिए लेखक की ही आलोचना करना न्यायसंगत नहीं होगा। सो उस दौर में कुछ ऐसे ईवेन्ट मैनेजरनुमा लेखक भी हुए जिन्होंने अपने बिरादरी के लोगों की बलवती आकांक्षा को तुष्ट करने के लिए कल्पनाशील प्रयोग किए और किसी न किसी बैनर के तले लेखकों का विदेश यात्रा करना प्रारंभ हुआ। जब वे लौटकर आते तो पता चलता था कि उन्होंने मास्को या वाशिंगटन, न्यूयार्क या लंदन, पेरिस या वारसा में किस तरह से हिन्दी भाषा के झंडे गाड़ दिए हैं।'
'सच पूछिए तो यह सिलसिला आज भी चल रहा है। सत्तर के दशक में ईवेन्ट मैनेजमेंट नामक विधा से लोग अपरिचित थे तथा इस तरह की सेवा देने वाले लोगों की प्रशंसा इंतजाम अली कहकर की जाती थी। इधर नई सदी में ईवेन्ट मैनेजमेंट व्यापार प्रबंधन की एक सर्व स्वीकार्य विधा बन चुकी है तथा अब जो इंतजामात होते हैं वे पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा सलीके से। ऐसा पता चलता है कि दुनिया के तमाम देश हिन्दी साहित्य का रसास्वाद करने के लिए मानो तड़प रहे हों।'
'अक्षर पर्व अगस्त 2013 की प्रस्तावना'
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