ललित सुरजन की कलम से- संसाधनों का राष्ट्रीयकरण!
पंडित नेहरू साम्यवादी नहीं थे। वे साम्यवाद के अच्छे पहलुओं को स्वीकार करने के लिए तैयार रहते थे

पंडित नेहरू साम्यवादी नहीं थे। वे साम्यवाद के अच्छे पहलुओं को स्वीकार करने के लिए तैयार रहते थे, लेकिन साम्यवाद के तौर-तरीकों से उन्हें कुछ बुनियादी आपत्तियां थीं और देश के भीतर साम्यवादी दल की रीति-नीति को लेकर उन्हें बहुत से संदेह भी थे।
वे एक खुले विचारों वाले व्यक्ति थे और देश के नव-निर्माण में सबसे यथायोग्य योगदान की अपेक्षा करते थे। जब देशी उद्योगपतियों ने उन्हें बॉम्बे प्लान दिया तो उसको उन्होंने बिना देखे खारिज नहीं किया। किन्तु उनकी दृढ़ मान्यता थी कि स्वतंत्र भारत में सार्वजनिक क्षेत्र प्रमुख भूमिका निभाएगा। आर्थिक गतिविधि का कोई भी आयाम हो, वे मानते थे कि उसकी कमान केन्द्र सरकार के पास होना चाहिए।
इस तरह हम पाते हैं कि उन्होंने देश में औद्योगिक प्रगति के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना प्रारंभ किया। सार्वजनिक क्षेत्र को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। उद्योग के साथ कृषि संवर्धन के लिए भी नई नीतियां बनाई गईं।
उन्होंने सहकारी कृषि की भी कल्पना की, जिसकी शुरुआत राजस्थान के सूरतगढ़ से हुई। पशुपालन व दुग्ध व्यवसाय में भी डॉ. कुरियन के नेतृत्व में सहकारी क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया। विज्ञान व तकनीकी विकास के लिए आईआईटी जैसे संस्थान खुले।
आणविक ऊर्जा आयोग, अंतरिक्ष आयोग, सीएसआईआर आदि की स्थापना की गई। इन सबकी परिकल्पनाएं योजना आयोग में की गई, जिसके अध्यक्ष वे स्वयं थे।
देशबंधु में 08 नवम्बर को प्रकाशित
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