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ललित सुरजन की कलम से- जेएनयू : सत्ताधीशों के इरादे?

'डीएसयू के छात्रों ने जो नारे लगाए उनसे हम सहमत नहीं हैं। कश्मीर का भविष्य क्या हो अथवा अफजल गुरु को फांसी देना न्यायोचित था या नहीं

ललित सुरजन की कलम से- जेएनयू : सत्ताधीशों के इरादे?
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'डीएसयू के छात्रों ने जो नारे लगाए उनसे हम सहमत नहीं हैं। कश्मीर का भविष्य क्या हो अथवा अफजल गुरु को फांसी देना न्यायोचित था या नहीं? ये ऐसे प्रश्न हैं जिन पर बौद्धिक बहसें हो सकती हैं और होना चाहिए।

छात्रों का भी यह हक बनता है कि वे ऐसी बहसों में भाग लें। लेकिन नारेबाजी बौद्धिक बहस का पर्याय नहीं है; फिर शैक्षणिक परिसर और सड़क में कोई फर्क नहीं रह जाता। इस सीमा तक मैं डीएसयू के कृत्य की आलोचना करता हूं, लेकिन उच्छृंखल नारेबाजी करने को देशद्रोह मान लेना एक दूसरी तरह का अतिरेक है।

सरकार समर्थक चैनल हेडलाइन टुडे के राहुल कंवल से चर्चा करते हुए विधिवेत्ता सोली सोराबजी ने जो कहा वह ध्यान देने योग्य है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत-विरोधी नारे लगाना देशद्रोह नहीं है। उस सभा में कन्हैया कुमार का उपस्थित होना (किसी भी कारण से) भी देशद्रोह नहीं है। स्मरण रहे कि सोली सोराबजी अटल बिहारी वाजपेयी के समय देश के महाधिवक्ता याने कि अटार्नी जनरल थे।'

'यह भाजपा और संघ के लोगों पर निर्भर करता है कि वे अपने शुभचिंतक सोली सोराबजी की परिपक्व राय को भाव दें या न दें। लेकिन सोमवार 15 तारीख को पटियाला हाउस अदालत में संघ समर्थक वकीलों व भाजपा के एक विधायक ने जो आचरण किया उससे ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दू राष्ट्र का सपना संजोए बैठे एक वर्ग ने स्वतंत्र बुद्धि से निर्णय लेना बंद कर दिया है।'

(देशबन्धु में 18 फरवरी 2016 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/02/blog-post_17.html


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