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ललित सुरजन की कलम से- क्या अमेरिका भारत का दोस्त है?

'भारत को स्वाधीनता के बाद अपने नवनिर्माण में यदि किसी देश ने सबसे यादा सहायता दी

ललित सुरजन की कलम से- क्या अमेरिका भारत का दोस्त है?
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'भारत को स्वाधीनता के बाद अपने नवनिर्माण में यदि किसी देश ने सबसे यादा सहायता दी, वह भी उदार और निशर्त, तो वह सोवियत संघ था। काश्मीर के प्रश्न पर उसने अपने वीटो का इस्तेमाल हमेशा भारत के पक्ष में किया, उसने भिलाई इस्पात संयंत्र स्थापित करने में भरपूर मदद की, बुदनी (म.प्र.) का ट्रेक्टर प्रशिक्षण केन्द्र और सूरतगढ़ (राज.) का सामुदायिक कृषि फार्म जैसी संस्थाएं उसके सहयोग से स्थापित हुईं, उसने विदेशी मुद्रा के बदले हमसे रुपयों में सौदा किया, भले ही भारतीय मुद्रा की उसे कोई जरूरत नहीं थी।

सैन्य सामग्री में भी सोवियत संघ ने भारत की मदद की। इस सबके बावजूद यह विडंबना ही कही जाएगी कि भारत के सुखी-सम्पन्न-स्वार्थी तबके ने सोवियत संघ को अपना मित्र नहीं माना, बल्कि हर मौके पर उसका मखौल उड़ाया और जो अमेरिका भारत को अपने पैरों तले रखना चाहता है उसकी चरण-धूलि अपने माथे पर लगाकर यह वर्ग विभोर होते रहा।'

'एक पल के लिए भारत और लैटिन अमेरिका के देशों की तुलना करके देखें। दक्षिण अमेरिका के अधिकतर देश अभी हाल तक 'बनाना रिपब्लिक' के रूप में जाने जाते थे। केले का बहुतायत उत्पादन करने वाले इन देशों की राजनीति, अर्थनीति और सैन्यनीति पर अमेरिका का ही नियंत्रण था, लेकिन इन देशों के नागरिकों ने लंबे समय तक इस दासता को स्वीकार नहीं किया।

क्यूबा के फिडेल कास्त्रो से प्रेरणा लेकर इन देशों ने स्वयं को अमेरिकी प्रभाव से मुक्त किया और आगे बढ़ने के लिए अपना रास्ता खुद तय करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने अनगिनत कुर्बानियां भी दीं, लेकिन इसके विपरीत भारत में क्या हो रहा है? इस देश के नौजवान आईआईटी, आईआईएम और अन्य संस्थाओं से पढ़कर अमेरिका की ओर भागे जा रहे हैं कि मानो मुक्ति वहां जाकर ही मिलेगी।'

(देशबन्धु में 02 जनवरी 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/01/blog-post_1.html


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