ललित सुरजन की कलम से- भारतीय समाज : रुग्णता के लक्षण
'इस समय संघ परिवार भारत में जो हिन्दू राष्ट्र निर्मित करने की कोशिश कर रहा है तब यह याद कर लेना मुनासिब होगा कि यही कोशिश हिटलर और मुसोलनी ने की थी, जिसकी परिणति द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में हुई थी

'इस समय संघ परिवार भारत में जो हिन्दू राष्ट्र निर्मित करने की कोशिश कर रहा है तब यह याद कर लेना मुनासिब होगा कि यही कोशिश हिटलर और मुसोलनी ने की थी, जिसकी परिणति द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में हुई थी। आज जब ग्लोबल विलेज की बात हो रही है तब किसी भी देश में गृहयुद्ध की स्थिति कितना विकराल रूप ले सकती है उसकी कल्पना मात्र से हर समझदार व्यक्ति को डर लगना चाहिए। अयातुल्ला खुमैनी ने इरान को एक शिया धर्म राज्य में रूपांतरित करने की जो पहल की उसका परिणाम यह हुआ कि इरान विकास की दौड़ में कम से कम एक सदी पिछड़ गया।
इस्लामिक स्टेट द्वारा खिलाफत की पुनर्स्थापना के लिए जो अकल्पनीय हिंसा की जा रही है उसके कारण पश्चिमी एशिया और उत्तर अफ्रीका के तमाम देश बेहाल हो रहे हैं। इस क्षेत्र की राजनीति का गहन अध्ययन अथवा ऐसी परिस्थितियों का विश्लेषण जिन्होंने किया है उनके कुछ उद्धरण यहां प्रस्तुत करने से मेरी बात और स्पष्ट हो सकती है।'
'यूएनडीपी ने अरब मानव विकास रिपोर्ट 2003 में लिखा था-''शोधकर्ताओं का मानना है कि अरब देशों में जो पढ़ाया जा रहा है वह स्वतंत्र तर्कबुद्धि व विचारशीलता बढ़ाने के बजाय व्यक्ति को अधीनता, आत्मसमर्पण, आज्ञाकारिता और परवशता के लिए प्रेरित करता है।'इसे उद्धृत करते हुए पूर्व राजदूत एवं दार्शनिक राबर्ट तोस्कानो कहते हैं कि-''जो सत्ताधीश पूर्ण नियंत्रण रखना चाहते हैं वे मुक्त, बहुलतावादी, नवाचारयुक्त विचारसरणि को पनपने से रोकते हैं। इसका दुष्प्रभाव अर्थव्यवस्था एवं समाज व्यवस्था दोनों में देखने मिलता है। इससे उदारवादी जनतंत्र के बजाय अनुदार जनतंत्र का उदय होता है जिससे शांतिपूर्ण विकास एवं परिवर्तन की संभावना खत्म हो जाती है।'
(देशबन्धु में 07 अप्रैल 2016 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/04/blog-post.htm


