ललित सुरजन की कलम से- भारत : बुजुर्गों का ख्याल
यूरोप-अमेरिका के देशों में नागरिक वृध्दावस्था में एकाकीपन झेलने के लिए अभिशप्त होते हैं, यह मैंने देखा है

यूरोप-अमेरिका के देशों में नागरिक वृध्दावस्था में एकाकीपन झेलने के लिए अभिशप्त होते हैं, यह मैंने देखा है। वृध्दाश्रम में रहते हुए वे अपनी जमीन से पूरी तरह उखड़ जाते हैं।
वे तरसते हैं कि बेटे-बेटी, नाती-पोते उनसे मिलने के लिए आएं। वहां स्काउट और रोटरी क्लब आदि संस्थाएं स्कूल के बच्चों को वृध्दाश्रम ले जाने का कार्यक्रम भी बनाती हैं ताकि उन रहवासियों को कुछ देर के लिए उत्फुल होने का अवसर मिल सके।
घंटे दो घंटे के लिए सही उनका सूनापन तो कम हो। अभी चालीस साल पहले तक भारत में ऐसी स्थिति नहीं थी। हम सचमुच अपनी संयुक्त परिवार प्रथा पर अभिमान करते थे, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में आए बदलावों से हम भी नहीं बच पाए और वह स्थिति आ ही गई जब मां-बाप एक शहर में और बच्चे नौकरी करने के लिए दूसरे शहर में।
उन्हें आपस में मिलने के अवसर भी कम होते गए हैं तथा जरूरत पड़े तो बूढ़े लोगों की देखभाल पड़ोसी ही करते हैं। बच्चों को तो काम से छुट्टी ही नहीं मिलती।
(देशबन्धु में 28 अगस्त 2013 को प्रकाशित)
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