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ललित सुरजन की कलम से- आम चुनाव और एन.जी.ओ.

'यह हर कोई जानता है कि जनतंत्र के तीन स्तंभ होते हैं-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका

ललित सुरजन की कलम से- आम चुनाव और एन.जी.ओ.
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'यह हर कोई जानता है कि जनतंत्र के तीन स्तंभ होते हैं-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। इन तीनों की अपनी-अपनी स्वायत्त भूमिकाएं हैं और इनके बीच इस तरह से शक्ति संतुलन होने की अपेक्षा की जाती है कि जनतंत्र की इमारत में दरार न पड़ने पाए

इस व्यवस्था में एक नया आयाम पत्रकारिता के विकास के साथ आ जुड़ा और मीडिया को जनता के बीच चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता मिल गई। ऐसी सामान्य धारणा बन गई कि व्यवस्था के औपचारिक ढांचे में अगर कहीं कोई कमजोरी आएगी तो मीडिया एक सजग प्रहरी के तौर पर उसकी ओर ध्यान आकर्षित करेगा ताकि यथासमय उस कमजोरी को दूर किया जा सके।

मैं समझता हूं कि पूरी दुनिया में एक दौर में अखबारों ने इस रोल को पूरी गंभीरता के साथ स्वीकार किया, आज की वास्तविकता भले ही कुछ और हो। यह याद रखना चाहिए कि औपचारिक रूप से स्थापित स्तंभों और जनमान्यता वाले चौथे स्तंभ के बीच कभी बहुत मधुर संबंध या नैकटय नहीं रहा और जब ऐसा होने लगा तो उसकी साख में कमी आने लगी।'

(देशबन्धु में 10 अप्रैल 2014 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/04/blog-post_9.html



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