ललित सुरजन की कलम से- सम-विषम : सफल प्रयोग, आगे क्या?
प्रदूषण के दैत्य से दिल्लीवासियों को बचाने के लिए अरविंद केजरीवाल को दीर्घकालीन व स्थायी उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है

प्रदूषण के दैत्य से दिल्लीवासियों को बचाने के लिए अरविंद केजरीवाल को दीर्घकालीन व स्थायी उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है। सच तो यह है कि यह समस्या न तो सिर्फ श्री केजरीवाल की है और न सिर्फ दिल्लीवासियों की। भारत सरकार के अलावा विभिन्न राज्यों की सरकारों व सभी पार्टियों को इस बारे में मिल-बैठ कर सोचने की आवश्यकता है।
सत्तारूढ़ भाजपा व प्रमुख विपक्ष कांग्रेस पर तो इसका मुख्य दायित्व तो है ही; समस्या के वैज्ञानिक व तकनीकी पक्ष को समझने वाले विशेषज्ञों को भी विचार और निर्णय की प्रक्रिया में शामिल करने से ही आगे का रास्ता निकलेगा। एक उदाहरण दिया जा सकता है। दिल्ली में ही प्रदूषण कम करने के लिए बसों में डीजल की जगह सीएनजी उपयोग करने हेतु सीएसई ने सुप्रीम कोर्ट तक जाकर लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। इसका लाभ लंबे समय तक दिल्ली को मिला। दिल्ली साइंस फोरम जैसी संस्थाएं भी इस दिशा में निरंतर काम कर रही हैं। प्रोफेसर दिनेश मोहन व सुनीता नारायण जैसे विशेषज्ञों की सेवाएं लेना हर तरह से लाभकारी है।
अभी जैसे एक बात उठी कि कार से जितना वायु प्रदूषण होता है उससे कई गुना अधिक सड़कों पर उडऩे वाली धूल से होता है। बात दुरुस्त है। लेकिन इस बात पर किसी ने गौर नहीं किया कि वाहनों की तेज रफ्तार के कारण सड़क पर जो घर्षण होता है उससे सीमेंट और डामर के जो कण उड़ते हैं वे ही बड़ी सीमा तक धूल में बदल जाते हैं। आशय यह कि यदि सड़कों पर गाडिय़ां कम हैं तो धूल भी उतनी ही कम उड़ेगी। इसे विस्तारपूर्वक समझना हो तो किसी विशेषज्ञ के पास ही जाना होगा। इसी तरह डीजल की बात है। डीजल वाहनों से धुआं भी अधिक उड़ता है और उससे कैंसर का खतरा भी बढ़ता है। यूरोप में डीजल कारों के लिए जो पैमाने लागू हैं वे भारत में नहीं हैं। यूरोपीय मानक हासिल करने के लिए क्या करना पड़ेगा, नीति निर्धारकों को यह बात भी समझना होगी।
(देशबन्धु में 21 जनवरी 2016 को प्रकाशित)
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