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ललित सुरजन की कलम से- हाथी, टमाटर और आदिवासी

छत्तीसगढ़ में हाथियों का आना क्यों शुरू हुआ? यह सवाल सबसे पहले उठना चाहिए

ललित सुरजन की कलम से- हाथी, टमाटर और आदिवासी
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छत्तीसगढ़ में हाथियों का आना क्यों शुरू हुआ? यह सवाल सबसे पहले उठना चाहिए। झारखंड तथा उड़ीसा के सीमावर्ती जंगलों में हाथियों की रिहाइश लंबे समय से रही है। वह अब उजड़ती जा रही है।

उन जंगलों में कोयला, लौह, अयस्क आदि खनिजों के भंडार हैं जिनका दोहन पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेजी के साथ बढ़ा है। इसके कारण पहले तो साल और अन्य बेशकीमती वृक्षों की अंधाधुंध कटाई प्रारंभ हुई। हाथी शाकाहारी प्राणी है।जंगलों के कटने से उसके भोजन के स्रोत धीरे-धीरे करके खत्म होने लगे। फिर जंगल इलाके में बुलडोजर, डम्पर, एक्सकेवेटर, ट्रक इत्यादि की आवाजाही के लिए सडक़ बनना शुरू हुई। इससे हाथी भयभीत होकर यहां-वहां भागने लगे। भारी मशीनों के नीचे दबकर इनकी मौतें भी हुईं।

इसके बाद खदानें खुदने से बड़े-बड़े दैत्याकार गड्ढे निर्मित होने लगे, ये भी हाथियों की मृत्यु का कारण बने। ऐसे में हाथियों का भागकर छत्तीसगढ़ आना शुरू हुआ। जब तक संख्या कम थी तब तक किसी का ध्यान नहीं गया, अब परेशानी ही परेशानी है।

पर्यावरण का विनाश करने की कीमत इस रूप में चुकाना पड़ेगी यह किसी ने नहीं सोचा था। शायद आज भी नहीं सोच रहे हैं। पहले किसी परियोजना के लिए पर्यावरण स्वीकृति के कठोर नियम थे, वे लगातार शिथिल किए जा रहे हैं। आज समस्या यह है कि एक तरफ हनुमान जी का अवतार माने जाने वाले बंदरों के उत्पात से दिल्ली तक की जनता त्रस्त है, तो दूसरी तरफ गणेश जी के अवतार हाथी के साथ संघर्ष का दौर प्रारंभ हो गया है।

(देशबन्धु में 15 दिसम्बर 2016 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/12/blog-post_14.html


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