ललित सुरजन की कलम से- शिक्षा और परीक्षा
'एक बात समझ आती है कि देश में बहुत सी अन्य बातों के साथ शिक्षा जगत में भी जो परिवर्तन नज़र आते हैं उसका बहुत कुछ श्रेय नवपूंजीवादी विश्वव्यवस्था को है

'एक बात समझ आती है कि देश में बहुत सी अन्य बातों के साथ शिक्षा जगत में भी जो परिवर्तन नज़र आते हैं उसका बहुत कुछ श्रेय नवपूंजीवादी विश्वव्यवस्था को है। कभी-कभी महसूस होता है कि सारी दुनिया जैसे किसी दौड़ में भाग ले रही है, एक के पीछे एक लोग भागे जा रहे हैं, क्यों, कहां, किसलिए यह शायद किसी को पता नहीं।
आजकल तो हर किसी मौके पर दौड़ों का आयोजन होने लगा है- रन फॉर दिस, रन फॉर दैट, शायद इसी सोच का प्रतिबिंब है।इधर हाल में बहुत सी कॉमेडी फिल्में आई हैं जैसे वेलकम आदि। उनमें भी सब लोग इसी तरह यहां से वहां दौड़ लगाते नज़र आते हैं, लेकिन अंत में हासिल कुछ नहीं होता। ये फिल्में भी एक तरह से इस नई सोच को ही दर्शाती हैं।
अब चूंकि भारत भी विश्व ग्राम का अंग बन चुका है, जिसका पहला प्रमाण हमारे सामने पुराने गुडग़ांव और नए गुरुग्राम के रूप में सामने है, तो स्वाभाविक ही हम दौड़ में किसी से पीछे नहीं रहना चाहते। इसका परिणाम है कि शिक्षा का निजीकरण प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में हो रहा है। बहुत सारे निजी विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, तकनीकी संस्थान इत्यादि प्रत्यक्ष उदाहरण हैं किंतु परोक्ष निजीकरण का मामला एकदम से समझ नहीं आता।'
(देशबन्धु में 15 जुलाई 2017 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/06/blog-post_14.html


