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ललित सुरजन की कलम से- शिक्षा और परीक्षा

'मैं अभी देख रहा हूं कि एक तरफ वार्षिक परीक्षाओं के नतीजे आ रहे हैं और दूसरी ओर विद्यार्थी हर दूसरे दिन एक नई परीक्षा देने की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं

ललित सुरजन की कलम से- शिक्षा और परीक्षा
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'मैं अभी देख रहा हूं कि एक तरफ वार्षिक परीक्षाओं के नतीजे आ रहे हैं और दूसरी ओर विद्यार्थी हर दूसरे दिन एक नई परीक्षा देने की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं। यह सुनने में ही विचित्र लगता है कि परीक्षा में आजकल सौ प्रतिशत तक अंक मिल रहे हैं।

देश की राजधानी के कॉलेजों में कटऑफ होता है जिसके तहत तिरानबे-चौरानबे प्रतिशत से कम अंक पाने वाले विद्यार्थियों को दाखिला ही नहीं मिल पाता। यह परीक्षापद्धति अपनी समझ में नहीं आती।

बताते हैं कि आजकल ऑब्जेक्टिव मैथड से परीक्षा ली जाती है। होती होगी।इस तरह के प्रयोगों के चलते परीक्षा में बैठने वाले बच्चों का खाना-पीना तक मुहाल हो जाता है। साल भर तैयारी करते रहो, चार विकल्प में से एक उत्तर सही है उसे याद करो, और अपना पूरा दिमाग उसी में लगा दो। मैं नहीं जानता कि इसमें विद्यार्थियों के स्वतंत्र मानसिक विकास का कितना अवसर होता है। वे इस कठिन परीक्षा पद्धति की तैयारियों के बीच देशकाल के बारे में कितना ज्ञान हासिल कर पाते हैं।

उनके कोमल हृदय का रस कहीं ये परीक्षा पद्धति सोख तो नहीं लेती है?'

(देशबन्धु में 15 जुलाई 2017 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/06/blog-post_14.html


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