ललित सुरजन की कलम से- भक्ति, शक्ति, युक्ति, विभक्ति
'कुछ दिन पहले एक अखबार ने अपने मुख्य शीर्षक में मोदीजी को ही बुद्ध की उपमा दे दी

'कुछ दिन पहले एक अखबार ने अपने मुख्य शीर्षक में मोदीजी को ही बुद्ध की उपमा दे दी। इसके पहले ये देश के पिता घोषित हो चुके थे। इन्हें गौतम और गांधी का संयुक्त अवतार कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा! कितने लोगों को इहलोक इनकी भक्ति से सुधर रहा है।
कम्प्यूटर जानने वाले कितने युवाओं को इनकी कृपा से काम मिल जाता है; सोशल मीडिया में ट्रॉल करने वाले हजारों जनों की रोजी-रोटी इसी के भरोसे चल रही है, जापान से लेकर अमेरिका तक, विवेक अग्निहोत्री से लेकर प्रसून जोशी इत्यादि तक, स्वयंसेवकों से लेकर एनआरआई व पीआईओ तक जिस उमंग-उत्साह से नित नए आयोजनों की श्रृंखला बनी है, वह वालमार्ट या मैक्डोनाल्ड से किस मायने में कम है? सोचकर देखिए, अगर यह सब न होता तो हमारे टीवी चैनल कैसे चलते? कितना अच्छा है कि सुबह आस्था आदि चैनलों पर रामदेव, रविशंकर आदि के प्रवचन सुनो और रात को न्यूज चैनल पर मोदी लीला देखने के बाद चैन की नींद सो जाओ। जो चौकीदार है, वही पिता है और उसकी शरण में हम बालकों को अभय मिला है।'
'हरि अनंत, हरिकथा अनंता। भक्ति की चर्चा को विश्राम देकर शक्ति के सूत्र पर दृष्टिपात करें। हम महाशक्ति बनने के पथ पर अग्रसर हैं। डीआरडीओ और ओएफबी आदि समय के साथ अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। हमें अपनी सामरिक ताकत बढ़ाना है, ताकि घर और बाहर के शत्रुओं को मात दी जा के। सीबीआई, आईबी, बीएसएफ, सीआरपीएफ, एनआईए, थलसेना, नभसेना, जलसेना, सब अपनी-अपनी जगह मुस्तैद हैं; लेकिन अब एकीकृत कमांड की आवश्यकता है। मौका पड़े तो हम अपनी तरफ से अणुबम का उपयोग करने से भी नहीं हिचकेंगे। देश के भीतर भी जो हमारा विरोध करते हैं, उन्हें भी पता चल जाए कि उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।'
(देशबन्धु में 3 अक्टूबर 2019 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2019/10/blog-post_2.html


