ललित सुरजन की कलम से- पूंजीवादी जनतंत्र और 'आप'
मैं जब आम आदमी पार्टी की अभूतपूर्व दिल्ली विजय की समीक्षा करने का प्रयत्न करता हूं तब यही सोचने पर मजबूर होता हूं कि देश में आप के रूप में एक ऐसी पार्टी का उदय हुआ है जो अमेरिकी शैली में पूंजीवादी जनतंत्र की ध्वजवाहक होगी

मैं जब आम आदमी पार्टी की अभूतपूर्व दिल्ली विजय की समीक्षा करने का प्रयत्न करता हूं तब यही सोचने पर मजबूर होता हूं कि देश में आप के रूप में एक ऐसी पार्टी का उदय हुआ है जो अमेरिकी शैली में पूंजीवादी जनतंत्र की ध्वजवाहक होगी। मैं याद करना चाहता हूं कि फ्रांसिस फुकुयामा ने लगभग ढाई दशक पहले अपनी बहुचर्चित पुस्तक 'द एंड ऑफ हिस्ट्री' यह अवधारणा प्रस्तुत की थी कि राजनैतिक इतिहास में पूंजीवादी जनतंत्र ही अंतिम विकल्प है। आगे चलकर फुकुयामा ने तो अपनी स्थापना को काफी हद तक संशोधित किया लेकिन क्या आश्चर्य कि भारत में मीमांसकों को उसका पुराना रूप ही स्वीकार हो!
जैसा कि हम जानते हैं योगेन्द्र यादव आम आदमी पार्टी के सबसे प्रबल, सबसे प्रमुख और सबसे मुखर भाष्यकार हैं। वे सीएसडीएस नामक उस संस्था या थिंक टैंक से भी जुड़े रहे हैं जिसकी राजनैतिक सोच मुख्यत: कांग्रेस विरोधी रही है। श्री यादव ने नतीजे आने के तुरंत बाद ही टीवी पर यह स्पष्ट रूप से घोषित किया कि आम आदमी पार्टी की विचारधारा वर्ग संघर्ष की विचारधारा नहीं है।
सीएसडीएस से ही जुड़े आप समर्थक प्रखर पत्रकार अभय कुमार दुबे का भी कहना है कि आम आदमी पार्टी पूंजी-विरोधी या व्यापार-विरोधी नहीं है। आप के प्रणेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी शपथ ग्रहण के बाद व्यापार जगत को निर्भय होकर अपना व्यापार करने और उस पर कानूनन टैक्स जमा करने का संदेश दिया है। ये तीनों उक्तियां आप के राजनैतिक दर्शन को समझने में हमारी मदद करती हैं।
(देशबन्धु में 19 फरवरी 2015 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/02/blog-post_18.html


