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ललित सुरजन की कलम से- भारत रत्न

'हम मदनमोहन मालवीय तथा अटल बिहारी वाजपेयी दोनों को भारत रत्न से नवाजने का स्वागत करते हैं

ललित सुरजन की कलम से- भारत रत्न
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'हम मदनमोहन मालवीय तथा अटल बिहारी वाजपेयी दोनों को भारत रत्न से नवाजने का स्वागत करते हैं, लेकिन इसके साथ एक बार फिर इन अलंकरणों के बारे में अपनी राय दोहराना चाहते हैं जो पहले भी कई बार इस स्थान पर व्यक्त कर चुके हैं। एक तो हमारा मानना है कि किसी भी दिवंगत व्यक्ति को भारत रत्न या कोई भी अन्य अलंकरण नहीं दिया जाना चाहिए।

मृत्योपरांत दिए गए सम्मान का क्या अर्थ है? इसका पूर्व में भी हम विरोध कर चुके हैं। महामना के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया गया है। मालवीयजी के नाम पर एतराज नहीं, लेकिन फिर लोकमान्य तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, महात्मा जोतिबा फुले और ऐसे अनेक महान स्वाधीनता सेनानियों, शिक्षाशास्त्रियों व समाज सुधारकों को क्यों छोड़ दिया जाए जो उस दौर में हुए?'

'हमारी दूसरी आपत्ति इस बात पर है कि राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को इन अलंकरणों के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। यह परंपरा नेहरू युग में ही पड़ गई थी, लेकिन उसका कोई औचित्य आज हमें समझ नहीं आता। देश की जनता ने जिस व्यक्ति को सर्वोच्च शिखर पर बैठाया हो क्या ऐसा सम्मान उसके लिए व्यर्थ नहीं है? प्रसंगवश यह भी कहना होगा कि फिल्मी सितारों, क्रिकेट खिलाडिय़ों, उद्योगपतियों आदि को भी भारत रत्न या पद्म अलंकरण नहीं मिलना चाहिए?

अव्वल तो उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिए भरपूर मुआवजा मिलता है और दूसरे उनके लिए अन्य तरह के सम्मान हासिल हैं। हमने सोचा था कि नरेन्द्र मोदी इन अलंकरणों को पूरी तरह समाप्त करने पर विचार करेंगे। ऐसा न करके उन्होंने यही सिद्ध किया है कि वे रूढ़िमुक्त नहीं हो पा रहे हैं।'

(देशबन्धु सम्पादकीय 25 दिसंबर 2014)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/12/blog-post_44.html


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