ललित सुरजन की कलम से- नीलामी का सीज़न
'इस सीज़न में जिस नीलामी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा तथा जिसकी चर्चा देश के बाहर भी हुई वह थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुचर्चित सूट की नीलामी

'इस सीज़न में जिस नीलामी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा तथा जिसकी चर्चा देश के बाहर भी हुई वह थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुचर्चित सूट की नीलामी। पाठकों को याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि इस सूट में सुनहरे धागे से प्रधानमंत्री के नाम की धारियां बुनी गई हैं। जिस दिन प्रधानमंत्री ने हैदराबाद हाउस की चाय पार्टी में यह सूट धारण किया था उसके बाद से ही इसे लेकर तरह-तरह की बातें हो रही थीं। इसकी कीमत लाखों रुपयों में आंकी जा रही थी यद्यपि भाजपा के अनथक प्रवक्ता संबित पात्रा की मानें तो इसका मूल्य मात्र पांच-छह हजार रुपए ही था। ये बात अलग है कि उनके इस बयान पर लोगों ने भरोसा नहीं किया। यह सूट मोदीजी को किसने दिया? कब दिया और क्यों दिया? इसका कपड़ा कहां से आया? डिजाइन किसने तैयार की? सिलाई कहां हुई? इसे लेकर खोजी पत्रकारों ने पता लगाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। किसी ने अहमदाबाद के टेलर मास्टर को पकड़ा, तो कोई मुंबई में फैशन डिजाइनर के स्टूडियो तक पहुंच गया। यह तथ्य भी सामने आया कि इजिप्त के तानाशाह हुस्नी मुबारक के पास भी ऐसा ही सूट था। अमेरिका तक के अखबारों में इस पर चर्चाएं हुईं। यह चर्चा शायद कुछ देर में ठंडी पड़ जाती, लेकिन एक दिन अचानक ज्ञात हुआ कि मोदीजी इस सूट को नीलाम कर रहे हैं तो मुझ जैसे बैठे-ठाले व्यक्ति को फिर कुछ लिखने के लिए मसाला मिल गया।'
'बताया गया कि सूरत में मोदीजी के इस सूट के अलावा प्रधानमंत्री को पिछले आठ माह में मिले अन्य उपहारों की भी नीलामी की जाएगी। यह नीलामी तीन दिन तक चली। पहले दिन सूट पर सवा करोड़ तक की बोली लगाई गई जो तीसरे दिन अंतत: चार करोड़ इकतीस लाख में जाकर रुकी। सूट के अलावा जो अन्य वस्तुएं नीलाम की गईं उनसे भी कुल मिलाकर लगभग चार करोड़ की राशि प्राप्त हुई। याने नाम वाला सूट एक तरफ, बाकी सारी सौगातें दूसरी तरफ। यह सारी राशि प्रधानमंत्री जी के प्रिय लक्ष्य गंगा सफाई अभियान के खाते में चली जाएगी। जब नीलामी करने की बात उठी तब रमेश विरानी नामक एक हीरा व्यापारी सामने आए। उन्होंने बताया कि यह सूट उन्होंने अपने बेटे की विवाह पत्रिका के साथ मोदीजी को भेंट किया था। सूट खरीदने वाले लक्ष्मीकांत पटेल भी हीरा व्यापारी हैं। अगर सचमुच गंगा किसी दिन साफ हो सकी तो उस दिन कहना होगा कि इसमें सूरत के हीरा व्यापारियों का अमूल्य योगदान था।'
(देशबन्धु में 26 फरवरी 2015 को प्रकाशित)
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