ललित सुरजन की कलम से- शिवराज सिंह अखबार निकालेंगे?
'दुनिया में ऐसा कौन सा राजनेता है जो अखबारों को पसंद करता हो? फर्क इतना है कि कुछ नेता आलोचना को सहज भाव से स्वीकार कर लेते हैं

'दुनिया में ऐसा कौन सा राजनेता है जो अखबारों को पसंद करता हो? फर्क इतना है कि कुछ नेता आलोचना को सहज भाव से स्वीकार कर लेते हैं, कुछ मन ही मन कुढ़ते रहते हैं और कुछ अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर कर देते हैं।
मध्यप्रदेश और भाजपा के ही पूर्व मुख्यमंत्रियों की बात करूं तो कैलाश जोशी अखबार में छपी आलोचना से कभी विचलित नहीं होते थे। वीरेन्द्र कुमार सखलेचा को अपनी सरकार के विरुद्ध एक शब्द भी लिखा जाना नागवार गुजरता था।
सुन्दरलाल पटवा इसकी कोई परवाह ही नहीं करते थे कि क्या छप रहा है। वे कहते थे- मैं अपना काम कर रहा हूं और अखबार वाले अपना। मध्यप्रदेश में ही कांगे्रस के मुख्यमंत्रियों के इस बारे में अपने-अपने विचार हैं। द्वारिकाप्रसाद मिश्र सामान्य तौर पर आलोचना सहन कर लेते थे, लेकिन एक समय एक अखबार के विज्ञापनों पर उन्होंने कुछ दिन के लिए रोक लगा दी थी।
श्यामाचरण शुक्ल संपादकों को सीधे फोन पर नाराजगी जतलाते थे और फिर तुरंत सहज हो जाते थे। अर्जुन सिंह पत्रकारों का कद नापकर तदनुरूप व्यवहार करते थे। दिग्विजय सिंह सखलेचाजी की ही तरह असहिष्णु थे।'
(देशबन्धु में 14 अगस्त 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/08/blog-post_13.हटम्ल


