ललित सुरजन की कलम से- नेता क्यों पढ़ें?
'दिल्ली में आप यदि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय जाएं तो वहां साम्यवाद और उससे जुड़े आंदोलनों इत्यादि पर पुस्तकें मिल जाएंगी

'दिल्ली में आप यदि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय जाएं तो वहां साम्यवाद और उससे जुड़े आंदोलनों इत्यादि पर पुस्तकें मिल जाएंगी। इस दृष्टि से कांगे्रस की स्थिति चिंतनीय है। यदि देश की राजधानी में स्थित उनके मुख्यालय में पुस्तक बिक्री की व्यवस्था नहीं है तो राज्यों अथवा जिलों में स्थित कार्यालयों में ऐसा कोई इंतजाम होगा इसकी कल्पना करना ही बेकार है।
कांग्रेस पार्टी ने इस बारे में आज तक कभी कोई विचार किया या नहीं, कहा नहीं जा सकता। लेकिन इस वक्त जब पार्टी के कर्णधारों के पास सोचने-विचारने के लिए कुछ वक्त है तब शायद इस ओर ध्यान देना अच्छा होगा।'
'भारतीय जनता पार्टी की दुकान पर सरदार पटेल की जीवनी बिक्री के लिए रखी गई है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। भाजपा प्रधानमंत्री तो सरदार की ऐसी प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं जो विश्व में सबसे ऊंची हो। इस पुस्तक विक्रय केन्द्र में स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें भी अवश्य होंगी, जिन्हें भाजपा ने बड़ी खूबसूरती से अपना आदर्श घोषित कर रखा है।
भाजपा के जो अन्य प्रेरणा पुरुष हैं उनके लिखित ग्रंथ भी यहां होंगे। फिर शायद अटल बिहारी वाजपेयी के कविता संग्रह भी। साथ ही लालकृष्ण अडवानी, जसवंत सिंह की आत्मकथाएं भी शायद उपलब्ध होंगी। इनके बरक्स कांग्रेस को देखें तो एक सौ पच्चीस साल के इतिहास में कांग्रेसजनों ने जितना लिखा है उसकी कोई थाह ही नहीं है। अगर वे चाहें तो भाजपा से चौगुनी बड़ी दुकान चला सकते हैं। बशर्ते कांग्रेसजनों में किताबें खरीदने और पढऩे की तमीज हो!'
(देशबन्धु में 03 जुलाई 2014 प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/07/blog-post.html


