ललित सुरजन की कलम से- राजनीति में वंचित समाज के लिए जगह कहाँ?
हमारी सामाजिक व्यवस्था में यह पहले से ही मान लिया जाता है कि दलित, आदिवासी या किसान किसी काबिल नहीं हैं

हमारी सामाजिक व्यवस्था में यह पहले से ही मान लिया जाता है कि दलित, आदिवासी या किसान किसी काबिल नहीं हैं। चूंकि संविधान ने उन्हें अधिकार दिए हैं इसलिए एक मजबूरी के तहत ही उन्हें बर्दाश्त किया जाता है।
वंचित समाज के नेता यदि अपनी जिम्मेदारियों में कहीं असफल सिध्द होते हैं तो उस बात को बढ़ा-चढा कर पेश किया जाता है। वंचित समाज का कोई सरकारी कर्मचारी यदि कम रिश्वत लेता है तो भी उसका मजाक उड़ाया जाता है कि उसमें हिम्मत की कमी है। उनकी वास्तविक या प्रचारित गलतियों को भी बढा-चढ़ाकर पेश किया जाता है।
बाबू जगजीवन राम पर आयकर रिटर्न जमा न करने के आरोप को लंबे समय तक चटखारे लेकर सुनाया जाता रहा; और भाजपा के दलित अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण तहलका कांड में फंसे तो पार्टी ने उनसे एकदम किनारा कर लिया। दूसरी तरफ जब उच्च वर्ग के व्यक्ति कदाचरण के दोषी पाए जाते हैं तो उस पर तुरंत आवरण डाल दिया जाता है।
(देशबन्धु में 05 जुलाई 2012 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/07/blog-post.html


