ललित सुरजन की कलम से- 'आप' की पॉलिटिक्स क्या है?
'आप कहेंगे कि अगर ऐसे अच्छे लोग राजनीति में आते हैं तो इसमें गलत क्या है

'आप कहेंगे कि अगर ऐसे अच्छे लोग राजनीति में आते हैं तो इसमें गलत क्या है। मेरा कहना है कि गलत कुछ नहीं है, लेकिन यदि राजमोहनजी और मेधाजी किन्हीं आदर्शों को पूरा करने की इच्छा लेकर चुनावी राजनीति में आए हैं तो आगे चलकर उन्हें कहीं निराशा न हो! एक तरफ ऐसे लोग हैं तो दूसरी तरफ मीरा सान्याल व कुमार विश्वास जैसे भी 'आप' के परचम तले चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
मीरा सान्याल ने मुंबई दक्षिण से ही 2009 में चुनाव लड़ा था और वे हार गई थीं। वे जिस रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड की भारत में मुख्य अधिकारी थीं, वह बैंक उन दिनों विवादों के घेरे में था। जो विश्वव्यापी मंदी आई थी उसमें इस बैंक की भी भूमिका बताई गई थी। सुश्री सान्याल चुनाव लड़ें उसमें हमें क्या आपत्ति होने चली, लेकिन यह शंका तो मन में उठती ही है कि मेधा पाटकर और मीरा सान्याल दोनों एक मंच पर क्यों और कैसे हैं, जबकि उनका राजनीतिक दर्शन जुदा-जुदा है।'
'इसी तरह राजमोहन गांधी के साथ-साथ कुमार विश्वास को देखकर कुछ अचरज होता है। यह मेरा सौभाग्य या दुर्भाग्य था कि रायपुर के एक कार्यक्रम में कुछ माह पूर्व मुझे श्री विश्वास का प्रवचन व तथाकथित कविताएं सुनने मिलीं। मुझे उनके विचारों में गंभीरता नहीं, बल्कि उथलापन नज़र आया। उन्होंने जो चुटकुलेबाजी की उससे पता चला कि यह व्यक्ति नस्लवादी, पुरुषसत्तावादी, किसी हद तक यथास्थितिवादी होने के साथ स्त्री-विरोधी है और अहिंसा में विश्वास नहीं रखता। अब इस विरोधाभास का समाधान क्या है कि एक तरफ राजमोहन गांधी हैं, जो ताउम्र अहिंसा और समन्वय की बात करते रहे तथा दूसरी तरफ कुमार विश्वास हैं जो पड़ोसी देश को हथियारों का डर दिखा रहे हैं।
सवाल उठता है कि श्री केजरीवाल व उनकी पार्टी के अन्य कर्णधार इस तरह के समीकरण कुछ सोच-समझकर बैठा रहे हैं, क्या इसके पीछे कोई रणनीति है या फिर सब कुछ अनजाने में होता चल रहा है? क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई ही इनका एकमात्र मकसद है या ये इसके परे कुछ और हासिल करना चाहते हैं?'
(देशबन्धु में 03 अप्रैल 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/04/blog-post.html


