ललित सुरजन की कलम से - चुनावी हार को जीत में बदलने की तरकीबें
'चुनाव के दौरान अपने पक्ष में माहौल तो बनाना ही पड़ता है। यह काम भी अब सीधे-सादे तरीके से कोई नहीं करता

'चुनाव के दौरान अपने पक्ष में माहौल तो बनाना ही पड़ता है। यह काम भी अब सीधे-सादे तरीके से कोई नहीं करता। अनेक चतुर सुजान अपने दूतों को विरोधी पक्ष के मतदाताओं के पास पठाते हैं।
वे जाकर बताते हैं कि उनकी तो हार हो रही है, भैयाजी या नेताजी बात ही नहीं सुनते, इत्यादि। इससे सामने वाले के गफलत में पड़ जाने की संभावना बन जाती है। जब उनके ही लोग हार मान बैठे हैं तो हमें कुछ करने की क्या जरूरत है? हमें तो जनता खुद ही जिता रही है।
बस, इसी खुशफहमी में पत्ता साफ। यह तो एक तरकीब है। इससे बढ़कर महीन तरकीब चुनाव पूर्व सर्वे के इस्तेमाल की है। पहले किसी पार्टी या प्रत्याशी की जीत का अनुमान पेश करो, फिर कुछ दिन बाद उस के हारने का अनुमान घोषित कर दो। प्रत्याशी का और उसके पक्षधर मतदाताओं का मनोबल तोड़ने, उन्हें हतोत्साह करने की यह तरकीब कई बार सफलतापूर्वक आजमाई गई है।
राजनैतिक दल इन सर्वे करने वालों और उन्हें प्रकाशित-प्रचारित करने वालों का ऐहसान चुकाने में कोई कमी नहीं रखते।'
(देशबन्धु में 10 नवंबर 2018 को प्रकाशित)
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