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ललित सुरजन की कलम से - योजना आयोग का अंत?

'कारपोरेट घराने नहीं चाहेंगे कि सरकार योजनाएं बनाएं। चूंकि सरकार जनता के वोटों से चुनी जाकर बनती है

ललित सुरजन की कलम से - योजना आयोग का अंत?
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'कारपोरेट घराने नहीं चाहेंगे कि सरकार योजनाएं बनाएं। चूंकि सरकार जनता के वोटों से चुनी जाकर बनती है, इसलिए यह उसकी मजबूरी है कि वह दिखावे के लिए ही सही, जनता के हित व कल्याण की बात करे।

योजना आयोग या योजना मण्डल नीतियां बनाएंगे तो उनमें जनहित के मुद्दों को प्रमुखता के साथ उठाया जाएगा। यही स्थिति कारपोरेट जगत को नागवार गुजर रही है। उसे अपने खेलने के लिए खुला मैदान चाहिए जहां किसी भी तरह का प्रतिबंध न हो।

वह जो अकूत कमाई करे उसमें से रिस-रिस कर नीचे तक जितना पहुंच जाए, जनता उतने में खुश रहे और खैर मनाए। योजना आयोग अगर समाप्त हो जाए, तो फिर कहना ही क्या है। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।'

(देशबन्धु में 28 अगस्त 2014 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/08/blog-post_28.html


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