ललित सुरजन की कलम से- सोनिया, कांग्रेस और सोशल मीडिया
'कांग्रेस के पास वर्तमान में जो चर्चित चेहरे हैं वे अपनी प्रतिष्ठा तथा विश्वसनीयता काफी हद तक खो चुके हैं

'कांग्रेस के पास वर्तमान में जो चर्चित चेहरे हैं वे अपनी प्रतिष्ठा तथा विश्वसनीयता काफी हद तक खो चुके हैं। यदि कहा जाए कि कांग्रेस की पराजय के पीछे ऐसे नेताओं का सत्तालोभ, धनलोभ और बड़बोलापन ही मुख्य कारण थे तो शायद गलत नहीं होगा।
आज जब कांग्रेस पार्टी धर्मनिरपेक्षता के साथ-साथ सामाजिक न्याय की लड़ाई लडऩे की बात कर रही है, जब वह कारपोरेट बनाम किसान-मजदूर का मुद्दा उठा रही है, जब वह समाजवादी और साम्यवादी दलों के साथ मंच साझा कर रही है, तब यह आवश्यक है कि उसके पास नेतृत्व की पहली-दूसरी पंक्ति में ऐसे लोग हों जो जुझारू होने के साथ-साथ जनता के बीच में भी सम्मान के पात्र हों। मुझे लगता है कि जिस तरह छत्तीसगढ़ में टी.एस. सिंहदेव और भूपेश बघेल की जोड़ी डटकर काम कर रही है वैसा ही वातावरण कांग्रेस को पूरे देश में बनाने की आवश्यकता है।'
'कांग्रेस अध्यक्ष को मैदानी लड़ाई के साथ-साथ वैचारिक स्तर पर भी मोर्चा खोलने की आवश्यकता है। पी.वी. नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह दोनों प्रकाण्ड पंडित थे, लेकिन उनकी दक्षिणपंथी वैचारिक रुझान कांग्रेस के लिए आत्मघाती सिद्ध हुई। अभी भी हमने देखा कि बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश पर कांग्रेस ने भाजपा का साथ देकर बिल पास करवा दिया। यद्यपि बाद में कोयला बिल और खनन बिल पर उसने अपना रुख बदल दिया।
इससे पता चला कि कांग्रेस में वैचारिक स्पष्टता और प्रतिबद्धता का अभाव है। सोनियाजी को समझना होगा कि आनन्द शर्मा और मनीष तिवारी जैसे नेता इस लड़ाई में काम नहीं आएंगे। यह अब उनके ऊपर है कि वे अपनी टीम में किनको शामिल करती हैं।'
(देशबन्धु में 26 मार्च 2015 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/03/blog-post_27.html


