ललित सुरजन की कलम से- प्रियंका गांधी :उदात्त राजनीति की संभावना
'प्रियंका गांधी 19 मार्च 2008 को वैल्लोर, तमिलनाडु के केंद्रीय कारागार पहुंचीं थीं

'प्रियंका गांधी 19 मार्च 2008 को वैल्लोर, तमिलनाडु के केंद्रीय कारागार पहुंचीं थीं। मकसद था बंदिनी नलिनी से भेंट करना। हत्यारों के जिस गिरोह ने लिट्टे सुप्रीमो प्रभाकरन के आदेश पर राजीव गांधी की हत्या की थी, नलिनी उसकी एक सदस्य थी। प्रियंका ने उससे मुलाकात की और अपने व अपने परिवार की ओर से उसे क्षमा कर देनेेे का संदेश दिया।
भारत के राजनैतिक इतिहास में यह एक अनूठी घटना थी। आज जब प्रियंका गांधी औपचारिक तौर पर राजनीति के मंच पर आ गई हैं और कांग्रेस पार्टी के एक महासचिव का पद संभाल लिया है, तब ग्यारह साल पुराने इस प्रसंग को याद रख लेना चाहिए। क्योंकि इसके निहितार्थ गहरे व दूरगामी हैं। आज भले ही प्रियंका के राजनीति में सक्रिय होने को आसन्न लोकसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा हो; मुझे लगता है कि इसमें कहीं राजनीति की क्षुद्रता से उठकर उसे उदारवादी स्वरूप देने की चाहत छुपी हुई है। पंडित नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक की राजनीतिक यात्रा का अध्ययन करने से बात कुछ साफ हो सकेगी।'
'विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने जवाहरलाल नेहरू को ऋतुराज की उपाधि दी थी। स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में ही वे विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बन चुके थे। वे प्रधानमंत्री बने तब उन्हें अजातशत्रु कहा गया। महान इतिहासकार अर्नाल्ड टायनबी ने कहा कि जब राजनीति के परिष्कार की आवश्यकता होती है तब नेहरू जैसे राजनेता का उदय होता है।
पं. नेहरू के निधन के बाद इंदिरा गांधी की राजनीति में आने की कोई इच्छा नहीं थी। वे तब अपनी इंग्लैंडवासी सहेली को पत्र लिखकर कहीं ठीक-ठाक रोजगार की तलाश कर रहीं थीं। यह एक विडम्बना भरा संयोग था कि शास्त्रीजी के आकस्मिक निधन के बाद उन्हें एक कमजोर राजनेता मानकर प्रधानमंत्री पद की पेशकश की गई, ताकि कांग्रेस के घुटे हुए नेताओं का सिंडीकैट अपनी मनमर्जी शासन कर सके।
बेशक आगे चलकर इंदिराजी का एक कठोर स्वरूप सामने आया। उन्होंने पार्टी के भीतर व बाहर अपने विरोधियों को पस्त करने के लिए हर तरह के उपाय किए, फिर भी मैं कहूंगा कि अपने जटिल व्यक्तित्व के बावजूद देशहित उनके लिए सर्वोपरि था और देश की जनता से उन्हें सच्चा प्रेम था।'
(देशबन्धु में 31 जनवरी 2019 को प्रकाशित)
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