ललित सुरजन की कलम से- विपक्ष : आत्ममंथन का समय
'पिछले तीन सालों के दौरान देश के विभिन्न प्रांतों में अनेक वरिष्ठ कांग्रेसजनों के साथ मेरी निजी चर्चाएं हुईं। इन सबका कहना था कि सोनिया गांधी से उन्हें भेंट के लिए समय ही नहीं मिलता

'पिछले तीन सालों के दौरान देश के विभिन्न प्रांतों में अनेक वरिष्ठ कांग्रेसजनों के साथ मेरी निजी चर्चाएं हुईं। इन सबका कहना था कि सोनिया गांधी से उन्हें भेंट के लिए समय ही नहीं मिलता। सोनिया गांधी नहीं तो राहुल के साथ भेंट होने में क्या अड़चन थी? तो बताया गया कि वे भी लोगों से नहीं मिलते।
मैं इसका एक ही अर्थ निकालता हूं कि सोनिया और राहुल के इर्द-गिर्द कुछ ऐसे लोग जमा हो गए थे जो पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं से मिलने से रोकते थे अन्यथा सोनिया, राहुल, प्रियंका तीनों का स्वभाव कुछ ऐसा है कि वे जनता के बीच जाकर प्रफुल्लता का अनुभव करते हैं। इसी बिन्दु पर आकर आज राहुल गांधी को कुछ कड़े कदम उठाने की जरूरत है, यदि वे कांग्रेस के अच्छे दिन लौटने की उम्मीद करते हैं।'
'यह बहुत अच्छा हुआ कि बहुत सारे कांग्रेसी तो हवा का रूख देखकर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए। अब यह नरेंद्र मोदी का सिरदर्द है कि उनसे कैसे निपटते हैं। बहुत से नाकारा कांग्रेसी चुनाव हार भी गए हैं। इन्हें नाकारा कहना गलत होगा। असल में इनकी सारी काबलियत सिर्फ अपनी स्वार्थपूर्ति तक सीमित है जिसे देर-सबेर मतदाताओं ने पहचान ही लिया।
इस तरह राहुल गांधी के पास एक अच्छा मौका है कि वे नई पीढ़ी के ऊर्जावान कांग्रेसियों को लेकर नए सिरे से अपनी टीम का गठन करें। दरअसल यूपीए-1 में भी कांग्रेस ने एक गलती की थी कि युवाओं को मनमोहन सरकार में जगह नहीं दी गई। इनमें से भी कुछ लोग हाल के चुनावों में हार चुके हैं, लेकिन राहुल को इनके साथ मिलकर एक मजबूत टीम बनाना चाहिए।'
(देशबन्धु में 19 मई 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/05/blog-


