ललित सुरजन की कलम से- नेताजी की मृत्यु (!) : अपने-अपने हित
कर्नल शाहनवाज़ खान कांग्रेस की टिकट पर अमरोहा (उत्तरप्रदेश) से लोकसभा के उम्मीदवार बनाए गए

'यह हमारे इतिहास का एक रोचक और स्मरणीय प्रसंग है कि आज़ाद हिन्द फौज याने आईएनए के तीन प्रमुख सेनानियों के विरुद्ध जब लालकिले में ब्रिटिश सरकार ने कोर्ट मार्शल की कार्रवाई शुरु की तो इनकी वकालत करने के लिए बैरिस्टर जवाहर लाल नेहरू ने बरसों बाद एक बार फिर अपना काला गाउन पहना तथा सुविख्यात वकील भूलाभाई देसाई के साथ मिलकर उनकी पैरवी की। इन तीनों के नाम उस समय बच्चे-बच्चे की जुबान पर थे- सहगल, ढिल्लो, शाहनवाज़। इसके आगे की जानकारी और भी गौरतलब है।
कर्नल शाहनवाज़ खान कांग्रेस की टिकट पर अमरोहा (उत्तरप्रदेश) से लोकसभा के उम्मीदवार बनाए गए। जीतने के बाद वे नेहरू सरकार में मंत्री भी बने। कर्नल गुरुदयाल सिंह ढिल्लो मध्यप्रदेश में ग्वालियर के पास शिवपुरी में आकर बसे। यहां उनको सरकार द्वारा खेती के लिए जमीन दी गई। वे भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन हिन्दू महासभा के उम्मीदवार के आगे जीत नहीं सके क्योंकि हिन्दू महासभा प्रत्याशी को ग्वालियर राजदरबार का समर्थन प्राप्त था।'
'कर्नल प्रेम सहगल कानपुर जाकर बस गए और एक कम्युनिस्ट नेता के रूप में राजनीति में सक्रिय हुए। उनकी पत्नी कैप्टन डॉ. लक्ष्मी सहगल आईएनए की झांसी रानी बिग्रेड की कमांडर थीं। दोनों पति-पत्नी वामपंथी राजनीति में ताउम्र सक्रिय रहे। कैप्टन लक्ष्मी ने अपनी मेडिकल प्रैक्टिस जारी रखी और एक ममतामयी डॉक्टर के रूप में उन्होंने ख्याति प्राप्त की। यह याद कर लेना मुनासिब होगा कि 2002 में वामदलों ने कैप्टन लक्ष्मी को एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव में खड़ा किया था। डॉ. कलाम सपा द्वारा प्रस्तावित भाजपा के उम्मीदवार थे और कांग्रेस ने भी उन्हें समर्थन देना बेहतर समझा था। इस तरह आज़ाद हिन्द फौज की एक वीर नायिका को अपनी वृद्धावस्था में पराजय का सामना करना पड़ा।'
(देशबन्धु में 8 अक्टूबर 2015 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/10/blog-post_9.html


