ललित सुरजन की कलम से- दिए जलाएं, पटाखों से दूर रहें
'2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण संबंधी एक फैसले में कहा था कि यह आवश्यक नहीं है कि दीपावली और पटाखे साथ-साथ चलें

'2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण संबंधी एक फैसले में कहा था कि यह आवश्यक नहीं है कि दीपावली और पटाखे साथ-साथ चलें। तब अदालत ने यह भी कहा था कि पटाखे किसी धार्मिक परंपरा का अंग नहीं है और उन्हें दीपावली से नहीं जोड़ा जा सकता। सुश्री पद्मनाभन ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए साक्षात्कार में इस फैसले का उल्लेख किया है।
उन्होंने आज से कोई बीस साल पहले केन्द्रीय प्रदूषण निवारण मंडल द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दी गई दलील का भी उल्लेख किया है कि पटाखों में गंधक का उपयोग नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसका धुआं हानिकारक होता है। ध्यान रहे कि उस समय केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। यही नहीं वाजपेयी सरकार के ही समय दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल भी पहल की थी कि घर-घर में पटाखे जलाने के बजाय सार्वजनिक स्थलों पर आतिशबाजी होना चाहिए, जिससे प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सके।'
'पटाखों से उठने वाला शोर और धुआं दोनों सेहत पर बुरा असर डालते हैं। इनसे दिल के मरीजों को तकलीफ होती है, अस्थमा की शिकायत बढ़ती है तथा पटाखों के शोर से कान के परदे भी खराब होते हैं। ये जो बच्चे सर्वोच्च न्यायालय में याचना करने गए वे कोई पेशेवर मुकदमेबाज नहीं थे। उन्होंने देखा था कि पिछले साल पटाखों के शोर व धुएं से दिल्ली महानगर पर कैसी विपत्ति आई।
पूरे शहर के आकाश पर धुआं इस कदर छाया कि साफ होने में कई दिन लग गए। बच्चों को तकलीफ न हो, यह सोचकर स्कूलों में दो या तीन दिन की छुट्टी करने की नौबत तक आ गई। एक तो हमारे देश में वैसे ही हर तरह के भारी प्रदूषण है। यह विडंबना है कि एक तरफ प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान चलाते हैं, स्वच्छ भारत का नारा देते हैं और दूसरी तरफ उन्हीं के अंधसमर्थक धर्म की आड़ लेकर ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलाने से बाज नहीं आ रहे हैं।'
(देशबन्धु में 19 अक्टूबर 2017 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/10/blog-post_20.html


