ललित सुरजन की कलम से - कश्मीर: पाक की भेड़िया नीति
मेरी समझ में कश्मीर घाटी की एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापना आकाशकुसुम अर्थात् असंभव कल्पना है

मेरी समझ में कश्मीर घाटी की एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापना आकाशकुसुम अर्थात् असंभव कल्पना है। उस कल्पना में चूंकि लद्दाख, जम्मू, गिलगिट का कोई स्थान नहीं है इसलिए वह एकतरफा और पूर्वाग्रहपूर्ण भी है।
घाटी में राजनीतिक चर्चा के द्वार हमेशा खुले रहना चाहिए इससे मैं सहमत हूं। इसमें भारत सरकार को और वर्तमान में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को सहजबुद्धि व विवेक से काम लेने की आवश्यकता है।
इसका आशय यह है कि हमें पाकिस्तान की सेना और पाकिस्तान की जनता दोनों के बीच जो बहुत बड़ा फर्क है उसे हर समय ध्यान में रखना होगा। भाजपा के नेताओं को पाकिस्तान पर और अल्पसंख्यकों के बारे में अनर्गल बयान देने से बचना इसकी एक बड़ी शर्त है।
यह भी ध्यान रखें कि पाक के सैनिक भारत को हर तरह से नीचा दिखाने और चुटकी लेने से बाज नहीं आएंगे। इसलिए हमारी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया गुस्से और जल्दबाजी में नहीं होना चाहिए। तीसरे, पाकिस्तान की शह पर घाटी में जो हिंसक वारदातें होती हैं उनके बारे में सतर्क रहना होगा। कश्मीर में भारतीय सेना का रोल कहां और कितना हो इसकी समीक्षा करना भी आवश्यक है।
सीमा पर फौज की तैनाती समझ में आती है, लेकिन नागरिक जनजीवन पर फौज की उपस्थिति का कोई प्रतिकूल असर न पड़े यह भी सुनिश्चित करना परम आवश्यक है।
(देशबंधु में 28 जुलाई 2016 को प्रकाशित)
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