ललित सुरजन की कलम से- विधानसभा नतीजों के संकेत
'नरेन्द्र मोदी की एक विराट छवि इस बीच गढ़ने की निरंतर कोशिशें हुईं जिसमें कारपोरेट घरानों व पूंजीमुखी मीडिया ने भी बढ़-चढ़ कर भूमिका निभाई

'नरेन्द्र मोदी की एक विराट छवि इस बीच गढ़ने की निरंतर कोशिशें हुईं जिसमें कारपोरेट घरानों व पूंजीमुखी मीडिया ने भी बढ़-चढ़ कर भूमिका निभाई। श्री मोदी को अपराजेय, लौहपुरुष, विकास पुरुष, कृष्ण, विवेकानंद जैसे विशेषणों से नवाजा गया।
उनकी अशिष्टता की हद को छूती वाचालता, प्रकट नस्लवादी मानसिकता, व्यक्तिवादी अहंकार, पार्टी के ऊपर स्वयं को रखने की एक तरह की दृष्टता व प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा- इन सबको उनके गुणों के रूप में प्रचारित किया गया।
ऐसा हिटलर के उदय के समय जर्मनी में भी हुआ था। आज भी इस तथ्य को सहजता से भुला दिया गया कि 182 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए नरेन्द्र मोदी को एक भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार उपयुक्त न जान पड़ा। पिछले चुनाव के दौरान उन्होंने जहां बार-बार मुख्य चुनाव आयुक्त का पूरा नाम लेकर उनके ईसाई होने को रेखांकित किया था, इस बार उन्होंने अहमद पटेल को सप्रयोजन बार-बार अहमद 'मियां' पटेल कहकर पुकारा। इससे नरेन्द्र मोदी के अल्पसंख्यक द्वेष का प्रमाण तो मिलता ही है, भाजपा का राष्ट्रीय पार्टी होने का दावा भी कमजोर पड़ता है।'
(देशबन्धु में 21 दिसम्बर 2013 को प्रकाशित सम्पादकीय )
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