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ललित सुरजन की कलम से- ग्लैमर की चाहत : देश की हकीकत

'मुझे एक बात रह-रह कर परेशान करती है कि बीते वर्षों में हमने भारत को दो समानांतर सामाजिक इकाइयों में विभक्त कर दिया है

ललित सुरजन की कलम से- ग्लैमर की चाहत : देश की हकीकत
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'मुझे एक बात रह-रह कर परेशान करती है कि बीते वर्षों में हमने भारत को दो समानांतर सामाजिक इकाइयों में विभक्त कर दिया है। एक तरफ नितांत निजी इच्छाएं हैं जिनको पूरा करने की चाहत में एक वर्ग अपनी सारी शक्ति खर्च कर दे रहा है और इच्छा यदि पूरी हो जाए तो शेष समाज से वह एक अमिट दूरी बना लेता है। दूसरी तरफ लगभग सौ करोड़ की विशाल आबादी है जिसके सामने शायद कोई सपना ही नहीं है।

जिसकी इच्छाओं पर पहरा बैठा दिया गया है। देश की प्रभुसत्ता जिनके हाथों में है वे उसे बीच-बीच में थपकियां देकर बहलाते रहते हैं। इसके विस्तार में न जाकर सिर्फ स्त्रियों की ही बात करूं तो इस विशाल वर्ग में वे लड़कियां हैं जिनका विवाह बचपन में कर दिया जाता है, जिनके कन्यादान के लिए सरकार पैसे देती है और आकर्षक नामों की सरकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। अनेक प्रकार से मोहताज बेटियां क्या स्वप्न देखें और कैसे देखें?'

'सचमुच एक नया भारत बन रहा है, जिसमें मुखपृष्ठ पर सुपरमॉडल है और भीतर भगवा वस्त्रधारी योगी युवा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का सात पेज का विज्ञापन! देश को इन दोनों समानांतर धाराओं के बीच अपना रास्ता तय करना है। '
(देशबंधु में 02 नवंबर 2017 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/11/blog-post.html


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