ललित सुरजन की कलम से- भ्रष्टाचार-7: अन्ना हजारे का अनशन
इस टी.वी. समय में जो न हो जाए सो कम है!अन्ना हजारे दिल्ली में अनशन पर बैठे तो जैसे पूरा देश हिल गया! और अनशन समाप्त हुआ तो जैसे देश रातोंरात बदल गया! इंडिया गेट पर विजय जुलूस निकल गया और मोमबत्तियां बुझाकर सारे आन्दोलनकारी अपने-अपने घर लौट गए

इस टी.वी. समय में जो न हो जाए सो कम है!अन्ना हजारे दिल्ली में अनशन पर बैठे तो जैसे पूरा देश हिल गया! और अनशन समाप्त हुआ तो जैसे देश रातोंरात बदल गया! इंडिया गेट पर विजय जुलूस निकल गया और मोमबत्तियां बुझाकर सारे आन्दोलनकारी अपने-अपने घर लौट गए। अब लोकपाल का विधेयक आएगा और जैसे देश से भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिट जाएगा!
चार दिन खूब शगल रहा और वर्ल्डकप और आईपीएल के बीच लगभग इतना ही वक्त खाली जा रहा था। 'अंधा क्या मांगे, दो ऑंखें'। अन्ना देवदूत की तरह आए और चमत्कार दिखाकर छोटे परदे से फिलहाल विदा हो गए।
रायपुर में अंतिम संस्कार करनेवाली एक संस्था ने अन्ना हजारे को कलयुग का गांधी की उपाधि दी (गोया महात्मा गांधी सतयुग में पैदा हुए थे)। कितने ही लोगों को जयप्रकाश नारायण याद आने लगे। किसी ने उनके सिपाही से संत बनने की बात कही। लेकिन अन्ना हजारे न तो गांधी हैं, न जेपी और न कोई संत। उनकी अगर दस-बीस प्रतिशत तुलना किसी से की जा सकती है तो शायद सिर्फ विनोबा भावे से। यह इसलिए कि इंदिरा जी ने आपातकाल लगाया तो विनोबा जी ने उसका औचित्य 'अनुशासन पर्व' कहकर प्रतिपादित किया।
अन्ना हजारे ने उनकी पुत्रवधु याने सोनिया जी को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अपने अनशन के द्वारा कुछ वक्त मुहैया करवा दिया है।बाकी तो विनोबा भावे बहुत बड़े विद्वान थे, विचारक थे, रचनात्मक कार्यकर्ता थे, गांधी के पट्टशिष्य थे। जबकि अन्ना हजारे की सर्वोपरि योग्यता उनका एक निष्ठावान रचनात्मक कार्यकर्ता होना है। महात्मा गांधी के साथ उनकी तुलना का कोई औचित्य नहीं बनता। इसे एक भावोच्छवास ही माना जा सकता है। इसी तरह जेपी के साथ उनकी तुलना करना तर्कसंगत नहीं होगा।
(14 अप्रैल 2011 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/04/7_22.html


