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नाकाम अमेरिकी स्वास्थ्य सेवाएं भारत के लिए सबक

अमेरिका की एक प्रमुख स्वास्थ्य बीमा प्रदाता कंपनी यूनाइटेड हेल्थ केयर के सीईओ ब्रायन थॉम्पसन की इस महीने की शुरुआत में हुई

नाकाम अमेरिकी स्वास्थ्य सेवाएं भारत के लिए सबक
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- जगदीश रत्तनानी

स्वास्थ्य सेवा के बारे में अमेरिका में फैली निराशा भारत के लिए महत्वपूर्ण सबक है क्योंकि चिंता इस बात की है कि स्वास्थ्य सेवा के मामले में हम अमेरिकी मॉडल की ओर झुक सकते हैं। यदि यह झुकाव पहले से ही नहीं है तो भी इसे अपनाना भारत में विनाशकारी साबित होगा जहां स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और भी अधिक चरमरा गई है। भारत में सर्वश्रेष्ठ डॉक्टरों के साथ विश्व स्तरीय देखभाल एवं उच्च मानकों का दावा किया गया है जो इलाज में बढ़ती लागत प्रदान करते है

अमेरिका की एक प्रमुख स्वास्थ्य बीमा प्रदाता कंपनी यूनाइटेड हेल्थ केयर के सीईओ ब्रायन थॉम्पसन की इस महीने की शुरुआत में हुई हत्या पर अमेरिकी जनता ने अपनी गहरी भावनाएं व्यक्त की हैं। शूटर के प्रति जनता के मन में सहानुभूति है। उसके इस कृत्य की तारीफ भी की जा रही है। थॉम्पसन की जान लेने वाली गोलियों पर तीन 'डी'- 'डिनाय', 'डिले', 'डिफेंड' (इनकार, देरी, बचाव) लिखा था पर इन्हें जरूर समझा जाना चाहिए जिनकी वजह से यह वारदात हुई।

तीन 'डी' एक संक्षिप्त शब्द बन गया और उन आलोचकों के लिए एक हथियार सा बन गया है जो इस बात पर नजर रखे हुए हैं कि किस तरह बीमा कंपनियां दावों को अस्वीकार करने या देरी करने और अपने सभी कॉर्पोरेट के साथ अपनी हरकतों का बचाव करके मरीजों को इतना हताश कर देती हैं कि चिकित्सा दावों के भुगतान मामलों में वे अपने दावे के बीच में ही हार मान लें। यह विलंब कॉर्पोरेट रणनीति का हिस्सा है जो बीमा कंपनियों के मुनाफे, कर्मचारियों को उच्च वेतन और दिवंगत सीईओ ब्रायन थॉम्पसन जैसों को बोनस बांटता है। कंपनी की टीमें एक तरफ कथित तौर पर बैकएंड पर दावों के इनकार पर काम करती हैं जबकि फ्रंटएंड में- उदाहरण के तौर पर यूनाइटेड हेल्थ केयर के मामले में चीफ अफोर्डबिलिटी ऑफिसर जैसे लोग नियुक्त किए जाते हैं जो आपके स्वास्थ्य की देखभाल करने वाली एक रंगीन तस्वीर दिखाते हैं।

स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का यह एक ऐसा पहलू है जो अत्यधिक जटिल है, जहां बड़े पैमाने पर निजीकरण और मुनाफे के साथ तीव्र प्रतिस्पर्धा है जो इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में शीर्ष दो या तीन सबसे अधिक लाभदायक क्षेत्र बनाता है। वैश्विक शोध फर्म आईबीआईएस वर्ल्ड के अनुसार 2024 में स्वास्थ्य और चिकित्सा बीमा व अस्पतालों को मिलाकर अनुमानित 267 अरब अमेरिकी डालर का कुल लाभ हुआ जिसकी वजह से यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था में संयुक्त रूप से तीसरा सबसे बड़ा लाभदायक उद्योग बन गया। मैकिन्से ने जनवरी 2024 में एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि 'हेल्थ केयर प्रॉफिट पूल' 7 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ेगा जो 2022 के 583 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2027 में 819 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा।

यह एक ऐसी व्यवस्था है जिससे भारत ही नहीं बल्कि दुनिया को भी सावधान रहने की जरूरत है। एक अत्यधिक लाभ केन्द्रित क्षेत्र में जहां जनता का स्वास्थ्य ही पैसा कमाने का जरिया हो यह उन सभी चीजों की ओर इशारा करती है जो स्वास्थ्य क्षेत्र के संचालन के तरीके में शामिल नहीं होने चाहिये। इस बात से सबक लेना चाहिए है कि अब जो गुस्सा निकल रहा है वह सतह के नीचे था और लंबे समय तक टुकड़ों-टुकड़ों में देखा गया था।

गौर करें कि मारे गए सीईओ ने दो साल पहले लिंक्डइन प्लेटफॉर्म पर एक संदेश पोस्ट किया था जिसमें कहा गया था: 'स्वास्थ्य देखभाल को और अधिक किफायती बनाना ... (है) अभी पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। दवा की कीमतों को कम करना और मूल्य पारदर्शिता में सुधार करना दो तरीके हैं जिनके माध्यम से हम यूनाइटेड हेल्थकेयर के सदस्यों के लिए लागत कम करने के लिए काम कर रहे हैं।' उस पोस्ट के नीचे की टिप्पणियां आंखें खोलने वाली थीं। एक ने लिखा- 'मुझे फेफड़ों का स्टेज-4 का मेटास्टैटिक कैंसर है। चिकित्सा दावों के लिए सभी अस्वीकृतियों के कारण हमने यूएचसी छोड़ दिया है। मनाही करने के लिए हर महीने एक अलग कारण होता है। इलाज के लिए आज तक हम 20,000 डॉलर से अधिक खर्च कर चुके हैं और इससे अधिक खर्च करना हमारी इस साल की आर्थिक क्षमता के बाहर है। चूंकि हमारी उम्र 60 साल से अधिक हैं- हमारे पास इसे फिर से भरने का समय नहीं है।' कई अन्य लोगों ने इस नाराजगी पर सहमति जाहिर की हालांकि पोस्ट पर कई 'लाइक'भी दर्ज किए।

आधिकारिक तौर पर यूनाइटेड हेल्थ केयर ने उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया कि अमेरिका की सभी बीमा कंपनियों की तुलना में इसकी उच्चतम इनकार दर है। कंपनी ने कहा कि वह लगभग 90 प्रतिशत चिकित्सा दावों को मंजूरी देती है और भुगतान करती है। लेकिन अन्य सर्वेक्षणों और रिपोर्टों ने बढ़ती लागत और बढ़ते दावों को नकारने पर निराशा और चिंताओं की ओर इशारा किया है। बीमा कंपनियों ने सामान्य रूप से इस प्रक्रिया को एक रोड ब्लॉक में बदल दिया है जिसे पार करने के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता होती है। हालांकि अब समूह के सीईओ एंड्रयू विट्टी इस बात से सहमत हो गए हैं कि प्रणाली 'त्रुटिपूर्ण' है।

स्वास्थ्य सेवा के बारे में अमेरिका में फैली निराशा भारत के लिए महत्वपूर्ण सबक है क्योंकि चिंता इस बात की है कि स्वास्थ्य सेवा के मामले में हम अमेरिकी मॉडल की ओर झुक सकते हैं। यदि यह झुकाव पहले से ही नहीं है तो भी इसे अपनाना भारत में विनाशकारी साबित होगा जहां स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और भी अधिक चरमरा गई है। भारत में सर्वश्रेष्ठ डॉक्टरों के साथ विश्व स्तरीय देखभाल एवं उच्च मानकों का दावा किया गया है जो इलाज में बढ़ती लागत प्रदान करते हैं, जो अमीरों की देखभाल करते हैं तथा बाकी को छोड़ देते हैं। इस तरह भारतीय प्रणाली अमेरिका की तुलना में कई अधिक बोझ उठाती है। भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमान 2021-22 के अनुसार, कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रतिशत के रूप में जेब से बाहर का खर्च लगभग 40 फीसदी है।

अमेरिकी प्रणाली अभी भी कई लोगों के लिए काफी अच्छी तरह से काम करती है। भारतीय प्रणाली के विपरीत वहां दवाएं निर्धारित की जाती हैं और उनके लिए भुगतान किया जाता है। बीमा या भुगतान करने की क्षमता हो या न हो, कोई भी अस्पताल आपातकालीन इलाज से इनकार नहीं कर सकता है। अस्पताल अग्रिम भुगतान की मांग नहीं करते हैं जैसी प्रथा भारत के लगभग सभी अस्पतालों में है।

अमेरिका में बाद की तारीख के लिए निर्धारित बिलों की वसूली के साथ दिल की बीमारियों जैसी महत्वपूर्ण या उच्च लागत वाली सर्जरी सहित किसी आपातकालीन मामले में इलाज किया जाना करना पूरी तरह से संभव है।

भारत में इनमें से किसी भी तरीके काम नहीं किया जाता है। भारतीयों की हताशा सबसे पहले उन लोगों के लिए देखभाल से इनकार करने पर है जो इलाज का भारी भरकम शुल्क वहन नहीं कर सकते। दूसरों के लिए यह डॉक्टर की सलाह की बढ़ी फीस, भारतीय अस्पतालों में कमरे के बढ़ते किराए और कई मामलों में डॉक्टरी पेशे के साथ बढ़ता मोहभंग तथा रोगियों के इलाज के तरीके हैं। बीमा लागत नाटकीय रूप से बढ़ी है तथा भारत में बुजुर्गों को कवरेज से वंचित कर दिया जाता है या कवरेज लागत नकारात्मक है।

अगर अमेरिका में व्याप्त व्यक्तिवादी, मुक्त बाजार, पूंजीवादी व्यवस्था में इस तरह का विद्रोह देखने को मिल सकता है तो कम से कम भारत को अमेरिकी व्यवस्था के करीब जाने या उसे अपनाने से सावधान रहने की जरूरत है। इसी मामले में जापान के बारे में विचार करें जहां 1960 के दशक में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा कवरेज आया। वहां लगभग सभी बीमारियों के उपचार कवर किए गए हैं, अधिकांश सेवाएं एक व्यवस्थित और दीर्घकालिक देखभाल बीमा प्रणाली के जरिए सस्ती हैं।
ये ऐसे कुछ सबक हैं जिन्हें हमें अस्वीकार करना चाहिए। भारत में स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हमें नया सीखने की जरूरत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


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