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आपातकाल और शरद यादव!

शरद यादव साझी विरासत के पक्षधर थे। 'साझी विरासत बची रहेगी तो देश बचा रहेगा', जाति नहीं बल्कि जमात जोड़ो, सामाजिक न्याय, विषमता, जाति जनगणना, के प्रबल हिमायती रहे और आम लोगों से मिलने -जुलने, संवाद करने आदि के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे

आपातकाल और शरद यादव!
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- रामबहोर साहू

शरद यादव साझी विरासत के पक्षधर थे। 'साझी विरासत बची रहेगी तो देश बचा रहेगा', जाति नहीं बल्कि जमात जोड़ो, सामाजिक न्याय, विषमता, जाति जनगणना, के प्रबल हिमायती रहे और आम लोगों से मिलने -जुलने, संवाद करने आदि के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे। जिसका अब अभाव हो गया है।

ये संयोग ही है कि आपातकाल के साक्षी रहे शरद यादव की इस वर्ष की जन्म वर्षगांठ उस समय है जब देश में केंद्र और कई राज्य सरकारें आपातकाल के पचास वर्ष पूरे होने पर चर्चा जोरों-शोरों से कर रही हैं। विगत दिनों, केंद्र सरकार के साथ-साथ 'डबल इंजन' की सरकारों ने इमरजेंसी लगने वाले दिनों को 'काला अध्याय', 'काला दिवस', तथा 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में याद किया और मनाया गया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा 25 जून 1975 को घोषित आपातकाल के दौरान, समाजवादी नेता और 'मंडल मसीहा' शरद यादव मीसा कानून (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट, 1971) के तहत विभिन्न जेलों में रहे। मीसा से पहले भी छात्र आंदोलन के चलते जेल जा चुके थे। आपातकाल लगने से पूर्व, फरवरी 1974, में ही शरद यादव जबलपुर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में सबसे युवा सांसद बने थे।

मंडल मसीहा समाजवादी नेता शरद यादव का जन्म 1 जुलाई 1947 को हुआ। मूलत: होशंगाबाद जिले के गांव आंखमऊ से आने वाले शरद यादव ने जबलपुर के रॉबर्टसन कॉलेज (अब शासकीय विज्ञान महाविद्यालय और महाकौशल कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, वह भी गोल्ड मेडल सहित।

जबलपुर में छात्र आंदोलन से राष्ट्रीय राजनीति के पटल में उभरे शरद यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में गरीबी, बेरोजगारी, अत्याचार व भ्रष्टाचार के विरुद्ध लगातार आवाज उठाई। जबलपुर विश्वविद्यालय के निर्वाचन में धांधली के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर उन्होंने उस मुद्दे को जोर शोर से उठाया। स्वयं छात्र संघ चुनाव लड़े और छात्रसंघ 'विश्वविद्यालय' चुनाव में विजयी होकर छात्र नेता से 'शरद भाई' की संज्ञा पाने वाले शरद यादव का आपातकाल के दौरान और बाद में अपनी राजनीति से देशभर में यही नाम कायम रहा।

इंदिरा गांधी सरकार की नीतियों के विरुद्ध देशव्यापी जन आंदोलन की अगुआई जयप्रकाश नारायण कर रहे थे, तब 1974 के जबलपुर लोक सभा के उपचुनाव में संयुक्त जनता पक्ष ने शरद यादव को अपना उम्मीदवार बनाया। चुनाव चिन्ह मिला 'हलधर किसान'। उनके चुनाव प्रचार सभाओं में स्वयं जयप्रकाश भी पहुंचे। कांग्रेस के धनाढ्य प्रत्याशी सेठ गोविंददासजी को पराजित कर शरद यादव ने महज 27 वर्ष की उम्र में सांसद बनने का गौरव अर्जित किया। शरद यादव जबलपुर से दो बार लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए - 1974 और 1977 में। जब साल 1977 में जनता पार्टी के गठन पर इसी 'हलधर किसान' चिन्ह के साथ जनता पार्टी को मिला, लोकसभा चुनाव जीता और केंद्र में सरकार बनाई। हालांकि जनता पार्टी की सरकार पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। फिर भी उस अल्प अवधि में जनता पार्टी ने दो प्रधानमंत्री देश को दिए—मोरारजी भाई देसाई व चौधरी चरण सिंह।

1980 में जनता पार्टी का विघटन हुआ। संपूर्ण क्रांति के सूत्रधार लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने एकता के इस आंदोलन में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी समेत कई नेताओं को संगठित किया था। लेकिन मतभेदों के चलते विघटन भी उसी तरीके से हुआ जैसा कि गठन हुआ था।

एक अंतराल के बाद, बोफोर्स तोप का मामला पुन: से विपक्षी दलों को एकजुट करने का माध्यम बना। तत्कालीन वित्त व रक्षा मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल का गठन हुआ, और जनता दल (राष्ट्रीय मोर्चा) सरकार के वे प्रधानमंत्री बने; हालांकि यह सरकार भी केवल ग्यारह माह ही रही। तत्पश्चात, चंद्रशेखर ने कांग्रेस नेता राजीव गांधी की रणनीति के चलते 'समर्थन' से छह माह के लिए प्रधानमंत्री पद संभाला।

शरद यादव लोकसभा के 5वें, 6वें, 10वें, 11वें, 13वें एवं 15वें सत्रों के लिए तीन राज्यों से चुने गए तथा उच्च सदन राज्यसभा के तीन सत्रों के लिए निर्वाचित होकर दोनों सदनों में सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों को बखूबी से उठाया। उनके व्यंग्यात्मक शिल्प ने सदन में बहसों को जीवंत बनाया। अपनी लम्बी और यादगार राजनीतिक पारी में वे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से दोनों सदनों के लिए चुने जाते रहे। अंत: बिहार को राजनीतिक कर्मभूमि बनाया।

शरद यादव साझी विरासत के पक्षधर थे। 'साझी विरासत बची रहेगी तो देश बचा रहेगा', जाति नहीं बल्कि जमात जोड़ो, सामाजिक न्याय, विषमता, जाति जनगणना, के प्रबल हिमायती रहे और आम लोगों से मिलने -जुलने, संवाद करने आदि के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे। जिसका अब अभाव हो गया है।

मंडल मसीहा और प्रखर समाजवाद के समर्थक शरद यादव को उनकी की 78वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन।

(लेखक विचार मंच से जुड़े हैं।)


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