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डोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति बनना वैश्विक रूप से विघटनकारी

सामान्य परिस्थितियों में इस तरह के बदलाव में कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन अभी पश्चिम एशिया और यूक्रेन में दो बड़े युद्ध चल रहे हैं

डोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति बनना वैश्विक रूप से विघटनकारी
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- नित्य चक्रवर्ती

सामान्य परिस्थितियों में इस तरह के बदलाव में कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन अभी पश्चिम एशिया और यूक्रेन में दो बड़े युद्ध चल रहे हैं। अमेरिका दोनों में ही उलझा हुआ है। उसके फैसले मायने रखते हैं। ट्रंप ने अपने चुनावी भाषण में कहा कि अगर वे चुने गये तो वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की से बात करके 24 घंटे में यूक्रेन युद्ध को रोक देंगे। यह चुनावी भाषण में कही गई बात थी।

बहुप्रतीक्षित अमेरिकी चुनाव के नतीजे आ गये हैं। रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद की दौड़ में शानदार जीत हासिल की है और साथ ही सीनेट और प्रतिनिधि सभा दोनों में रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत दिलाया है। यह स्पष्ट है कि अमेरिकी मतदाताओं के बहुमत ने इस राजनीतिक दिग्गज पर भरोसा दिखाया है, जिन्होंने अमेरिका को फिर से महान बनाने का वायदा किया है। डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए, 2024 के चुनाव परिणामों ने कुछ असहज सवाल सामने ला दिये हैं। पार्टी नेतृत्व को इनपर विचार करना होगा। अब डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने का वैश्विक प्रभाव क्या होगा?

सबसे पहले यह बताना जरूरी है कि डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी 2025 को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति पद संभालेंगे और इसलिए अभी से लेकर अगले साल 20 जनवरी तक 75 दिन बचे हैं। इस बीच की अवधि में बाइडेन सरकार का चरित्र कमजोर रहेगा, राष्ट्रपति कोई बड़ा फैसला नहीं ले पायेंगे।

सामान्य परिस्थितियों में इस तरह के बदलाव में कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन अभी पश्चिम एशिया और यूक्रेन में दो बड़े युद्ध चल रहे हैं। अमेरिका दोनों में ही उलझा हुआ है। उसके फैसले मायने रखते हैं। ट्रंप ने अपने चुनावी भाषण में कहा कि अगर वे चुने गये तो वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की से बात करके 24 घंटे में यूक्रेन युद्ध को रोक देंगे। यह चुनावी भाषण में कही गई बात थी लेकिन अगर ट्रंप इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन युद्ध में भी कोई बड़ा कदम उठाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। 20 जनवरी को आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति बनने से पहले ही वे अनौपचारिक रूप से विदेश मंत्री को अपने विचार बता सकते हैं और उनसे उसी के अनुसार आगे बढ़ने को कह सकते हैं। अच्छा हो या बुरा, दोनों युद्ध मोर्चों पर कुछ बदलाव तो होगा ही, संभवत: 20 जनवरी 2025 से भी पहले।

यह स्पष्ट है कि अमेरिका के सहयोगी, खास तौर पर नैटो और यूरोपीय संघ घबड़ाये हुए हैं। ट्रंप के बहुमत का आंकड़ा-270 पार करने से पहले ही फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने ट्रंप को फोन करके बधाई दी और यह भी आश्वासन दिया कि उन्हें उनके साथ काम करने में खुशी होगी। अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से यह कूटनीतिक रूप से अनुचित है। फिर भी, यूरोपीय नेता दूसरे कार्यकाल के राष्ट्रपति के सामने झुकने के लिए कतार में खड़े हैं और आश्वासन दे रहे हैं कि वे अमेरिका के मित्र हैं, अमेरिका के विरोधी नहीं।

इस साल सितंबर में विस्कॉन्सिन में अपने चुनाव अभियान में ट्रंप ने जो कहा, उस पर यूरोपीय देशों के प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा: 'हमारे साथ हमारे सहयोगियों ने बहुत बुरा व्यवहार किया है, हमारे सहयोगी हमारे साथ हमारे तथाकथित दुश्मनों से भी बुरा व्यवहार करते हैं।' फिर उन्होंने कहा: 'सैन्य रूप से हम उनकी रक्षा करते हैं और फिर वे व्यापार में हमें धोखा देते हैं। अब हमें ऐसा नहीं होने देना चाहिए।ज्ज् इससे संकेत बहुत स्पष्ट हैं।'

ट्रम्प के सलाहकारों ने दूसरे कार्यकाल के नीति पत्र में कहा है कि व्यापार के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होगा। चीन और जापान के साथ यूरोपीय देशों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अमेरिका ने इसे बहुत लंबे समय तक झेला है। अपने पिछले कार्यकाल में ट्रम्प ने ईरान परमाणु समझौते और पेरिस जलवायु समझौते सहित कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से हाथ खींच लिये थे। ट्रम्प चाहते थे कि नैटो सदस्य देश मानदंडों के अनुसार खर्च साझा करें। अंतिम समय में कुछ समझ बनी और ट्रम्प ने अमेरिकी फंडिंग में कोई खास कटौती नहीं की।

लेकिन अब, अपने दूसरे कार्यकाल में, वह अधिक आश्वस्त हैं, तथा वह अपनी समझ के आधार पर ही निर्णय लेंगे। उनमें एक बड़ी तानाशाही प्रवृत्ति है और पेंटागन के आकाओं के लिए उनके मन में बहुत कम सम्मान है। शांति आंदोलन के कार्यकर्ताओं के लिए ट्रंप एक पहेली हो सकते हैं। वे संघर्ष विराम के लिए 24 घंटे की समयसीमा दे सकते हैं या फिर किसी एक पक्ष को खत्म करने की स्थिति में आ सकते हैं। यथास्थितिवादी अंतरराष्ट्रीय नौकरशाही में ट्रंप एक विघटनकारी हैं। परिणाम अच्छे या बुरे हो सकते हैं। रिपब्लिकन राष्ट्रपति अपने दूसरे कार्यकाल में अधिक अप्रत्याशित होंगे।

भारत के बारे में क्या? सबसे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास राजनीतिक कारणों से खुश होने के कारण हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। मोदी और ट्रंप में कुछ समानताएं हैं। वे दोनों ही तानाशाही और इस्लामोफोबिया के समान मरीज हैं। लेकिन ट्रंप की तुलना में नरेंद्र मोदी शांत हैं। केनेडा और अमेरिकी एजेंसियों के साथ नवीनतम कूटनीतिक उलझन में भारत को कुछ राहत मिलेगी। नरेंद्र मोदी को ट्रंप की व्यक्तिगत मदद इस समय बहुत मूल्यवान होगी।
फिर बांग्लादेश का मुद्दा है, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख डॉ. मोहम्मद यूनुस इस साल सितंबर में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र विधानसभा सत्र में भारतीय प्रधानमंत्री से मिलने के लिए बेताब थे, लेकिन मोदी ने टाल दिया। मोदी भी अमेरिकी चुनावों का इंतजार कर रहे थे। ट्रम्प ने दिवाली पर अपने संदेश में डॉ. यूनुस के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। अब डॉ. यूनुस के दिन गिने-चुने रह गये हैं। उन्हें हिलेरी क्लिंटन का दोस्त माना जाता है। वे ट्रम्प के लिए अछूत हैं। अमेरिका की नीति में नाटकीय बदलाव आयेगा। बांग्लादेश पर भी इसका असर पड़ेगा और यह भारतीय प्रधानमंत्री के साथ विचार-विमर्श के बाद किया जायेगा। इस तरह से मोदी को इस पूर्वी पड़ोसी से कुछ राहत मिलेगी।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा? ट्रंप मूल रूप से एक व्यवसायी हैं। वे राजनीति को व्यवसाय और अर्थव्यवस्था के चश्मे से समझते हैं। अपने दूसरे कार्यकाल में वे व्यापार युद्ध शुरू करेंगे- मुख्य रूप से चीन के साथ लेकिन भारत के साथ भी, जिसे उन्होंने 17 सितंबर को द्विपक्षीय व्यापार का 'बहुत बड़ा दुरुपयोगकर्ता' बताया था। टैरिफ वृद्धि से भारतीय निर्यात प्रभावित होगा। फार्मा निर्यात पर और अधिक असर पड़ेगा क्योंकि ट्रंप ओबामा केयर के प्रावधानों को खत्म करने या कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है और 2023-24 में भारतीय निर्यात का 18 प्रतिशत हिस्सा उसे मिला, जो एक दशक पहले 12 प्रतिशत था। भारत के लिए अमेरिका को निर्यात वृद्धि बनाये रखना और यहां तक कि स्तर को बढ़ाना घरेलू उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका द्वारा आयात पर ट्रंप के उच्च टैरिफ का अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भी प्रभाव पड़ेगा। अमेरिकी उद्योग जगत का एक बड़ा हिस्सा चीनी आयात पर उच्च टैरिफ के पक्ष में नहीं है, क्योंकि उनके द्वारा निर्मित उत्पाद अधिक महंगे होंगे। अमेरिकी आर्थिक विकास के समग्र परिप्रेक्ष्य से भी ट्रम्प नीति की अपनी कमियां हैं। नीति को बाद में संशोधित किया जा सकता है।

कुल मिलाकर ट्रम्प 2.0 चीन, रूस, यूरोपीय संघ के देशों और भारत जैसे अग्रणी देशों सहित दुनिया के लिए एक कठिन दौर होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ उपायों के प्रभाव को कम करने के लिए ट्रम्प के साथ अपने व्यक्तिगत तालमेल का उपयोग कर सकते हैं। एक सख्त नीति के दायरे में भी, संशोधन की गुंजाइश है। डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के तहत भारत के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए भारतीय प्रधानमंत्री को ऐसा करना होगा।


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