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सरकार और अमीरों की दीवाली

पिछले कुछ समय से सोने और चांदी की कीमतों में जबरदस्त उछाल की खबरें लगातार आ रही हैं

सरकार और अमीरों की दीवाली
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पिछले कुछ समय से सोने और चांदी की कीमतों में जबरदस्त उछाल की खबरें लगातार आ रही हैं। सोने में 65प्रतिशत और चांदी में 81प्रतिशत की तेजी रही। इस वजह से आशंका थी कि इस साल लोग धनतेरस पर लोग उस तरह की खरीदारी नहीं करेंगे, जैसे हर साल किया करते हैं। लेकिन इस बार अखबारों में खबर आई कि पिछले साल से भी ज्यादा की खरीदारी हुई। कम से कम एक लाख करोड़ का कुल कारोबार हुआ है, इसमें 60 हजार करोड़ तो केवल सोना-चांदी खरीदने में खर्च हुए हैं। लेकिन जैसे हर चमकती चीज सोना नहीं होती, वैसे ही सारे आंकड़े सही तस्वीर पेश नहीं करते हैं। हिसाब लगाने वालों ने इस गणित को समझ लिया है कि बिक्री तो करीब-करीब पिछले साल जितनी ही हुई है, लेकिन जो कीमतें बढ़ी हुई हैं, उस वजह से कहा जा रहा है कि इस साल खरीदारों ने जी खोल कर खर्च किया है। असल में ये शाइनिंग इंडिया, फील गुड और अच्छे दिन आएंगे जैसा ही एक और छलावा है।

मोदी सरकार का प्रचार तंत्र कितना तगड़ा है, यह किसी को समझाने की जरूरत नहीं। प्रिंट, इलेक्ट्रानिक, सोशल, न्यू हर तरह का मीडिया भाजपा की मुठ्ठी में है। संवैधानिक संस्थाएं और कारोबारी संगठन सब भाजपा की ताकत के आगे सिर झुका चुके हैं। इसलिए अब गलत-सही, नैतिक-अनैतिक कुछ मायने नहीं रखता। जो सरकार कहती है, वह जनता तक पहुंचा दिया जाता है। इस साल तो लाल किले से 15 अगस्त को जीएसटी में बदलाव की घोषणा करने के साथ ही मोदीजी ने कह दिया था कि डबल दीवाली मनेगी। उनके सारे मंत्रियों ने भी यही बात कही। अधिकारियों ने यही कहा और सेलिब्रिटी पत्रकारों ने यही कहा। तो बस देश में डबल दीवाली मन रही है, ऐसा दिखा दिया गया।

ट्रंप का टैरिफ, ऑपरेशन सिंदूर में लगी लागत, प्राकृतिक आपदाएं इन सबके कारण चाहे जितना भी बड़ा नुकसान हुआ हो, उसे कभी तस्वीर में नहीं लाया जाएगा। आखिर घर की बैठक को सबसे अधिक साज-सज्जा के साथ रखा जाता है, भीतर के कमरों में रोशनी है या नहीं, सुविधाएं हैं या नहीं, इसे देखने कोई नहीं आता, न ही किसी कमी को बाहर दिखाया जाता है। इसी तरह मोदीजी ने अपने 140 करोड़ के परिवार को यही संदेश दिया है कि सब अपना हँसता चेहरा दिखाएं, आंसुओं को पी जाएं और दुखों को भूल जाएं। दुख तो चिता के साथ ही खत्म होते हैं, इसलिए उनकी बात करके देश को कमजोर न दिखाएं। भारत को विश्वगुरु ही नहीं, विश्वपति दिखाने का बड़ा मकसद मोदीजी साथ लेकर चल रहे हैं। इसलिए देश इस बार डबल दीवाली मना रहा है।

हालांकि देश का एक धनाढ्य वर्ग है, जो बमुश्किल 2-4 प्रतिशत है और इसके पास जितनी संपत्ति है, शेष भारत के पास उससे कम ही होगी। असल में यही वर्ग कीमती धातुओं की खरीदारी करता है, वर्ना आम मध्यमवर्गीय परिवार तो चांदी का सिक्का खरीद कर शगुन की रस्म अदायगी पूरी कर लेते हैं। जिनकी इतनी भी हैसियत नहीं होती वे स्टील, तांबे, पीतल के बर्तनों से काम चला लेते हैं। सब इसी उम्मीद में दीपावली पर साफ-सफाई से लेकर लक्ष्मी पूजन करते हैं कि उनके घर लक्ष्मी पधारें। लक्ष्मी का एक नाम चंचला भी है, यानी चंचल स्वभाव की, जो एक जगह टिक कर नहीं रहेंगी। धार्मिक आख्यानों में धन की देवी लक्ष्मी को चंचला नाम शायद इंसान को ये याद दिलाए रखने के लिए दिया गया कि भौतिक समृद्धि पर ही वो न इठलाए। अगर आज उसके पास धन-संपत्ति है, तो कल को ये उसके हाथों से निकल कर दूसरों के हाथों में चली जाएगी। यह सीख तो बिल्कु ल सही है, लेकिन आज के दौर में यह सटीक नहीं बैठ रही है। आम आदमी उम्मीदों पर जिंदा है कि उसके अच्छे दिन आएंगे, यानी लक्ष्मी उसके दरवाजे पर भी दस्तक देंगी। लेकिन लक्ष्मी अब चंचल नहीं स्थायी भाव से इन्हीं 2-4 प्रतिशत धनकुबेरों के पास जाकर बैठ गई हैं। सरकार ने भी हर तरह से घेराबंदी कर ली है कि लक्ष्मी इनके दायरे से बाहर न निकले।

वैसे अब धर्म को जिंदा रखने के लिए, हिंदुओं को जगाने में अपना योगदान देने के लिए आम लोग पांच किलो मुफ्त का राशन, छह हजार रुपए सालाना की सम्मान राशि, डेढ़-दो हजार रुपयों का बेरोजगारी भत्ता जैसी खैरात लेकर भी दीवाली मना रहे हैं। वे खुश हैं कि उनके घर दिए जलाने के लिए तेल का इंतजाम हो न हो, अयोध्या में रिकार्ड दिए जलने चाहिए, उससे होड़ करते दिल्ली के कर्तव्यपथ पर दिए जल रहे हैं। अगले साल जहां-जहां भाजपा चुनाव जीत लेगी, वहां भी ऐसे ही सार्वजनिक दिए जलाएं जाएंगे। वसुधैव कुटुंबकम न सही, देश कुटुंबकम का लक्ष्य तो प्राप्त हो ही गया है।

इतने संतोषी स्वभाव के भारतीयों की पूरी जमात तैयार हो गई है कि अब धर्मगुरुओं को भी सोचना पड़ेगा कि इन लोगों को भौतिक सुखों की जगह आध्यात्मिक सुख प्राप्ति के लिए प्रेरित करने की जरूरत ही नहीं रही, अब इन्हें कौन सी सीख दें। हम भारतीय अब संतोषी ही नहीं वर्तमान में जीने वाले भी बन गए हैं। भूतकाल की बातें भूल चुके हैं और भविष्य की चिंता भी हम नहीं करते। बस आज में जीते हैं, इसलिए ये भी याद नहीं रहता कि अभी छह महीना भी नहीं हुआ है कि हमारी बहनों का सिंदूर आतंकियों ने उजाड़ा, जिसके बदले में ऑपरेशन सिंदूर सरकार ने चलाया था, उसमें भी कई मौतें हुई थीं। असंख्य लोग प्राकृतिक आपदाओं में चले गए। अनगिनत जानें भगदड़, दुर्घटनाओं आदि मानव निर्मित आपदाओं में गईं और लगातार जा रही हैं। बेरोजगारी, कर्ज आदि के कारण आत्महत्याएं हो रही हैं। लेकिन इन सबको पिछले जन्म का कर्म मानकर भूल जाने कहा जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अभी तो देश सरकार को, व्यापारियों को, अमीरों को दीवाली मनाता देखे और खुश हो जाए। ज्यादा खुशी चाहिए तो दीवाली की रात अंतरिक्ष से भारत की तस्वीरें लेकर जो जगमगाता देश दिखाया जाएगा, उसे देख लें। सभी को शुभ और मंगल दीपावली।


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