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उपराष्ट्रपति पद के विवाद, सरकार जिम्मेदार

देश में उपराष्ट्रपति का पद अमूमन सियासी दलदल से दूर ही रहता था। राष्ट्रपति चुनाव में फिर भी राजनैतिक दांव-पेंच देखने मिल जाते थे

उपराष्ट्रपति पद के विवाद, सरकार जिम्मेदार
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देश में उपराष्ट्रपति का पद अमूमन सियासी दलदल से दूर ही रहता था। राष्ट्रपति चुनाव में फिर भी राजनैतिक दांव-पेंच देखने मिल जाते थे, लेकिन उपराष्ट्रपति पद पर बैठे व्यक्ति या उपराष्ट्रपति चुनाव से विवादों का नाता नहीं होता था, अब 11 सालों की मोदी सरकार में यह बड़ा परिवर्तन भी देखने मिल रहा है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे का रहस्य अब भी बना हुआ है। रोजाना उनके लिए विपक्ष के नेता सवाल उठा रहे हैं कि धनखड़ साहब कहां हैं, कैसे हैं, वे सामने क्यों नहीं आते। लेकिन इनका कोई जवाब नहीं मिलता। मानसून सत्र खत्म हो गया, लेकिन 21 जुलाई यानी सत्र के पहले दिन श्री धनखड़ के इस्तीफे के बाद से उनकी कोई चर्चा उस राज्यसभा में नहीं हुई, जहां वो आसंदी पर बैठते थे। मोदी सरकार कम से कम उनके लिए एक विदाई समारोह आयोजित कर ही सकती थी, लेकिन इतनी शालीनता और शिष्टता भी नहीं दिखाई गई। इस बारे में गृहमंत्री अमित शाह से न्यूज एजेंसी एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश ने सवाल किया तो उनका जवाब था कि स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने इस्तीफा दिया। धनखड़ साहब को भी न जाने किस बात का डर है जो अब तक उन्होंने न किसी से फोन पर बात की, न आम जनता के लिए एक संदेश ही भेजा कि वे ठीक हैं या स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से जुड़े रहस्य अभी बरकरार हैं और इस बीच उपराष्ट्रपति चुनाव की तैयारी भी शुरु हो गई है। मैदान में एनडीए के सीपी राधाकृष्णन और इंडिया के बी श्रीनिवास रेड्डी हैं। श्री रेड्डी को आम आदमी पार्टी ने भी साथ देने का वादा किया है, जबकि वह इंडिया गठबंधन से अलग हो चुकी है। लेकिन चूंकि मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूर्व जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए इसे विचारधारा की लड़ाई बताया था, इसलिए संविधान की रक्षा के लिए आम आदमी पार्टी फिर इंडिया गठबंधन के साथ खड़ी है। इधर अखिलेश यादव ने भी अपील कर दी है कि अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर वोट करें, यानी उपराष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के सामने क्रॉस वोटिंग का खतरा खड़ा हो गया है। भाजपा तो संघ से जुड़े रहे सी पी राधाकृष्णन को वोट देगी ही, लेकिन जेडीयू, टीडीपी या शिंदे गुट की शिवसेना, अजित पवार की एनसीपी, इनमें से किसी ने अपनी ज़मीर की आवाज़ सुन ली, तो फिर एनडीए प्रत्याशी का जीतना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में अब अमित शाह खुद मैदान में उतरते दिख रहे हैं।

उपराष्ट्रपति चुनाव में शालीनता की उम्मीद थी, लेकिन भाजपा इसे मलिन कर रही है। गृहमंत्री अमित शाह जस्टिस रेड्डी को घेरने के लिए छत्तीसगढ़ के सलवा जुडूम अभियान पर 2011 के उनके फैसले को फाइलों से निकाला है। इस फैसले के आधार पर श्री शाह जस्टिस रेड्डी को नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाला बता रहे हैं, उनके मुताबिक अगर सलवा जुडूम को खत्म करने का फैसला न आया होता तो 2020 तक नक्सलवाद खत्म हो गया होता। यहां अमित शाह ने न केवल न्यायपालिका पर उंगली उठाई है, बल्कि सुरक्षा बलों का अपमान भी किया है, जो जान की बाजी लगाकर नक्सली इलाकों में तैनात हैं।

इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में जस्टिस रेड्डी ने साफ कहा है कि गृहमंत्री को सुप्रीम कोर्ट के 40 पन्नों के फैसले को पढ़ना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह फैसला उनका व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का था। जस्टिस रेड्डी ने कहा कि इस देश के सबसे ताकतवर गृह मंत्री, 14 साल बाद यह मुद्दा उठा रहे हैं। जब वे इस समस्या से जूझ रहे थे, तब उन्हें कभी यह ख्याल ही नहीं आया कि यह फैसला इसकी जड़ है या उनके रास्ते में रोड़ा बन रहा है और उनके हाथ बांध रहा है। जस्टिस रेड्डी ने सलवा जुडूम के अपने फैसले पर कहा कि हिंसा से लड़ने के नाम पर आप एक और हिंसक समूह नहीं बना सकते और दोनों एक-दूसरे के खिलाफ लड़ सकते हैं। हथियार चलाने का एकाधिकार हमेशा से राज्य का रहा है। राज्य को हिंसा के ऐसे खतरे से लड़ने का पूरा अधिकार है। फैसले में बस इतना कहा गया था, 'इसे आउटसोर्स न करें।Ó हिंसा से निपटना संप्रभु राज्य का संवैधानिक कर्तव्य, दायित्व और ज़िम्मेदारी है।

बता दें कि 2011 में जस्टिस सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस एस.एस. निज्जर की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने सलवा जुडूम को असंवैधानिक और गैरकानूनी घोषित किया। कोर्ट ने इसे मानवाधिकारों के हनन के साथ संविधान के खिलाफ भी बताया था। कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को इसे तुरंत खत्म करने का आदेश दिया था। अब अमित शाह उसी मुद्दे को अकारण जिंदा कर रहे हैं, ताकि विपक्ष के उम्मीदवार की छवि बिगड़े और उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत उनकी हो जाए। अमित शाह के अलावा पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी जस्टिस रेड्डी का झुकाव माओवाद की तरफ बताया है। हालांकि इस तरह के हमले और कटाक्ष न केवल उपराष्ट्रपति पद की गरिमा को चोट पहुंचा रहे हैं, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए भी चिंता जगा रहे हैं। भाजपा के शासन में पहले से जांच एजेंसियों और न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित करने के आरोप लगे हैं। अब अमित शाह उसे सही साबित कर रहे हैं। हालांकि गृहमंत्री की टिप्पणी बहुतों को नागवार गुजरी है।

18 पूर्व जजों ने गृहमंत्री के बयान को सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता के लिए ख़तरा बताया है। इनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ए.के. पटनायक, अभय ओका, गोपाला गौड़ा, विक्रमजीत सेन, कुरियन जोसेफ, मदन बी. लोकुर और जे. चेलमेश्वर, जैसे नामों के अलावा तीन पूर्व हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं। इन पूर्व जजों ने एक संयुक्त बयान जारी किया है। बयान में कहा गया कि शाह का सलवा जुडूम फैसले की गलत व्याख्या करना और उसका राजनीतिकरण करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है। पूर्व जजों ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि फैसले में कहीं भी नक्सलवाद का समर्थन नहीं किया गया।

बी सुदर्शन रेड्डी के साथ सी पी राधाकृष्णन को मुकाबला करने देने की जगह अमित शाह खुद मुकाबला करने उतर गए हैं, यह सही रवैया नहीं है।


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