Top
Begin typing your search above and press return to search.

आपदा या कमाई का अवसर

सरकार ने फिर से कबाड़ घोषित वाहनों, अर्थात दस साल पुराने डीजल वाहन और पंद्रह साल पुराने पेट्रोल वाहनों की धर-पकड़ तेज करने का फिसला किया है

आपदा या कमाई का अवसर
X

- अरविन्द मोहन

सरकार ने फिर से कबाड़ घोषित वाहनों, अर्थात दस साल पुराने डीजल वाहन और पंद्रह साल पुराने पेट्रोल वाहनों की धर-पकड़ तेज करने का फिसला किया है। दिल्ली में 60 लाख ऐसे वाहन है और उनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया है। सार्वजनिक जगहों पर उनकी पार्किंग भी गैरकानूनी है, उनको चलाना तो अपराध है ही। और दिल्ली सरकार की मुखिया आतिशी सिंह को यहां के लेफ्टि. गवर्नर वी.के. सक्सेना के आदेश को आगे बढ़ाने में कोई आपत्ति नहीं हुई।

अगर दिल्ली की तीनों सरकारें अर्थात केंद्र सरकार, राज्य सरकार और लाट साहब वाली तीसरी सरकार किसी सवाल पर एक ही दिशा में काम करने पर जुटे तो इसे ट्रिपल इंजन सरकार कहा जाए या नहीं, इस बात पर विवाद हो सकता है लेकिन अगर वे तीनों किसी बड़ी समस्या को निपटाने के सवाल पर सक्रिय हो तो सामान्य ढंग से खुश होना बनाता है। दिल्ली में प्रदूषण वाले मौसम की शुरुआत से पहले उसकी रोकथाम के नाम पर ऐसा ही हो रहा है। ऐसा हर साल होता है और स्वास्थ्य के नुकसान के साथ ही काफी सारे धन की बर्बादी को जान समझ लेने के बाद भी कहा जा सकता है कि कुछ मामलों में हल्का फर्क आया है। पराली अर्थात धान की खेत में छोड़ी डंडियों या पुआल को वहीं जला देने से फैलने वाले धुएं की मात्रा और सघनता में कमी आई है और कई कदम भी उठाने का प्रयास हुआ है। ऐसा सारे कदमों के लिए नहीं कह सकते पर बेतहाशा बढ़ती गाड़ियों से निकलने वाले धुएं को भी नुकसानदेह गिनना ऐसा ही कदम है जो कैंसर से लेकर न जाने कितनी बीमारियों का कारण माना जाता है।

इसके साथ ही यह भी हुआ है कि आपदा में अवसर ढूंढने वाले भी आ गए हैं। मुश्किल यह है कि ऐसा सिर्फ कमाई के काम में लगे चंद लोग नहीं हैं, खुद सरकार उनकी सेवा में लगी दिखती है। और वह गलती करने वालों को पकड़ने या सजा देने की जगह अपने नागरिकों को सजा देने, वसूली करने और उनके स्वास्थ्य से खिलवाड़ की छूट दे रही है। जो लोग प्रदूषण रोकने के मानकों पर खरा उतरने वाले वाहन नहीं बना रहे हैं सरकार उनके वाहनों की बिक्री बढ़वाने का जिम्मा लेकर काम करती लग रही है और यह करते हुए उसका खजाना भी भर रहा है। जिन नागरिकों की जेब कट रही है या जिनको प्रदूषण की मार झेलनी होती है उनको ही दोबारा वहां खरीदने का बोझ उठाना पड़ रहा है क्योंकि सरकार ने सार्वजनिक परिवहन को नाश होने दिया है। अकेले दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या में 2021-22 में सीधे 35.4 फीसदी कमी हो गई है। 2020-21 में दिल्ली में 1.2 करोड़ पंजीकृत वाहन थे जो 2021-22 में 79.2 लाख रह गए। दिल्ली सरकार ने 48,77,646 वाहनों का पंजीयन समाप्त किया था और बड़े पैमाने पर पुराने वाहनों की धर-पकड़ से यह 'सफलता' मिली थी पर ये सारे वाहन किसी न किसी के उपयोग में थे, जीवन चला रहे थे, उनकी शान थे। यह और बात है कि हमको-आपको चूं की आवाज भी सुनाई नहीं दी।

अब फिर सरकार ने फिर से कबाड़ घोषित वाहनों, अर्थात दस साल पुराने डीजल वाहन और पंद्रह साल पुराने पेट्रोल वाहनों की धर-पकड़ तेज करने का फिसला किया है। दिल्ली में 60 लाख ऐसे वाहन है और उनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया है। सार्वजनिक जगहों पर उनकी पार्किंग भी गैरकानूनी है, उनको चलाना तो अपराध है ही। और दिल्ली सरकार की मुखिया आतिशी सिंह को यहां के लेफ्टि. गवर्नर वी.के. सक्सेना के आदेश को आगे बढ़ाने में कोई आपत्ति नहीं हुई। सक्सेना साहब इस काम को मिशन भाव से कर रहे हैं। कमीशन फार एयर क्वालिटी मैनेजमेंट नामक संस्था भी सर्दियों के पहले बढ़ते प्रदूषण के नाम पर अपनी रिपोर्ट और सुझाव के साथ हाजिर है। किसी को यह बताने की जरूरत नहीं है कि उनका बैर प्रदूषण से है या पुरानी गाड़ियों से या फिर सबका उद्देश्य नई गाड़ियां बिकवाना है। न तो प्रदूषण चेक करके देखने की जरूरत मानी गई ना ऐसे वाहनों को देहात या कम प्रदूषण वाले इलाकों में भेजने का या सस्ते निर्यात का विकल्प सोचा गया। सीधे दामिल फांसी। जिन गाड़ियों का पंजीकरण निरस्त हुआ है उनमें बहुत ऐसी भी है जिनको ज्यादा अवधि का लाइसेंस इन्हीं सरकारों ने दिया और जिनसे ज्यादा अवधि का रोड टैक्स वसूला जा चुका है। सुनते हैं कि इस आदेश के खिलाफ कुछ लोग अदालत गए थे पर उनके मुकदमे का क्या हुआ? यह खबर कहीं से नहीं आई है।

दूसरी ओर, हर कहीं पुराने वाहनों की धर-पकड़ हो रही है। सिपाहियों को सिर्फ निर्देश नहीं है, संभवत: कुछ बोनस भी दिया जा रहा है। कमीशन फार एयर क्वालिटी मैनेजमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की है कि दिल्ली में 5928675 ऐसी गाड़ियां हैं लेकिन सिर्फ कुछ हजार गाड़ियां ही पकड़ी गई हैं। लाट साहब सक्सेना जी अलग लगे पड़े हैं। सो देखते जाइए कि इस बार के धुंध और प्रदूषण के मौसम में कितनी गाड़ियां कुर्बान होती हैं। जाहिर तौर पर इन सबके पीछे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2020-21 के बजट में निजी वाहनों और व्यावसायिक वाहनों को जोड़कर करीब अस्सी लाख गाडियों को 'स्क्रैप' करने की बात कही है। तब भी कहीं से कोई आवाज नहीं आई थी। इसके बाद नई नीति के कुछ संकेत परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने दिए थे। यह फैसला सिर्फ नई गाडियों के लिए नहीं था बल्कि उन गाडियों पर भी लागू हुआ जिनका पन्द्रह और बीस साल का रोड टैक्स पहले वसूला जा चुका था। कहना न होगा कि मामला दिल्ली भर का नहीं है। अगर अकेले दिल्ली में एक साल मे 48 लाख से ज्यादा गाड़ियां कबाड़ बन गईं और अब 60 लाख गाड़ियों का पंजीकरण खत्म हुआ है तो देश भर की संख्या से निर्मला जी और गडकरी साहब बहुत खुश होंगे ही।

माना जाता है कि जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण घोषणा कर रही थीं तब उन्होंने जानबूझ कर गलत आंकड़ा दिया। उन्होंने जो संख्या बताई वह असल संख्या के लगभग चालीस फीसदी भी नहीं मानी जाती। जानकार मानते हैं कि देश में इस नीति के दायरे में आने वाले वाहनों की संख्या चार से साढ़े चार करोड़ के बीच होगी जिनमें से आधे से कम वाहन ही उम्र की सीमा के अन्दर हैं।

जाहिर है काफी सारे वाहन जिला पंजीयन कार्यालय की पहुंच और जानकारी से भी बाहर होंगे। कार को कबाड़ मानकर तोड़ना, गलाना और उसके मु_ी भर धातुओं का दोबारा इस्तेमाल करने से बेहतर तो यही है कि किसी तरह उसमें इस्तेमाल हुई चीजों का तब तक अधिकतम इस्तेमाल किया जाए जब तक वे सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से (अर्थात ज्यादा प्रदूषण फैलाकर) हमारे लिए खतरा न बन जाएं. यह कल्पना भी आसान नहीं है कि भारत जैसे गरीब मुल्क में बनी गाड़ियों में से दो करोड़ से ज्यादा को हमारी ही सरकार कबाड़ बनाने जा रही है। एक तो भारत जैसे देश में इतनी गाड़ियों के बनने चलने और सार्वजनिक परिवहन की इस दुर्गति पर भी सवाल उठने चाहिए। इतनी गाडियों से रोड टैक्स वसूलने के बाद भी टोल टैक्स वसूली वाली सड़कों पर सवाल उठने चाहिए। लेकिन इनमें से कोई सवाल इतना बड़ा नहीं है कि एक साथ दो-ढाई करोड़ ऐसी गाड़ियों को कबाड़ घोषित करके गिनती की कम्पनियों को मालामाल करने के फैसले पर सवाल उठाने की बात भुला दी जाए।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it