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ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा से निराशा

संसद के मानसून सत्र के छठवें दिन आखिरकार ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की शुरुआत हो ही गई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस चर्चा को शुरु किया

ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा से निराशा
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संसद के मानसून सत्र के छठवें दिन आखिरकार ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की शुरुआत हो ही गई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस चर्चा को शुरु किया, लेकिन उनके पूरे भाषण की टोन विपक्ष को निशाने पर लेने जैसी थी। ऐसा लग रहा था मानो मोदी सरकार पाकिस्तान के साथ-साथ विपक्ष से भी पूरा हिसाब-किताब चुकता करना चाहती है। गौरतलब है कि जब 22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में 4 आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियां बरसा कर निर्दोष पर्यटकों की जान ली थी, तब कांग्रेस ने इस घटना पर गहरा दुख जताते हुए सरकार को आश्वासन दिया था कि वह जो कदम उठाना चाहे, कांग्रेस उसका साथ देगी, क्योंकि मामला देशहित का है।

लेकिन यह भाजपा ही थी, जिसने इस मामले का राजनीतिकरण शुरु किया और एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि धर्म पूछा, जाति नहीं। भाजपा के इस पोस्ट की व्यापक निंदा भी हुई थी कि वह ऐसे गंभीर मुद्दे पर संवेदनहीनता दिखाते हुए वोटों की राजनीति कर रही है। हालांकि भाजपा का संवेदनहीन रवैया इसके बाद भी नहीं थमा। नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होकर भी इस मसले पर आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी बरते रहे। जिस वक्त हमला हुआ, श्री मोदी सऊदी अरब में थे। अपना दौरा तो उन्होंने बीच में छोड़ा, लेकिन देश लौटने के बाद वे जम्मू-कश्मीर जाने की जगह बिहार गए और 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस के कार्यक्रम में शामिल हुए। वहीं मंच से हिंदी और अंग्रेजी में उन्होंने धरती के आखिरी छोर से आतंकियों को पकड़ने की बात कही थी। लेकिन पहलगाम हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर शुरु हुआ 6 और 7 मई की आधी रात को। यानी 13 दिनों तक देश इंतजार ही करता रहा कि कब श्री मोदी अपने वादे को पूरा करेंगे और आतंकियों को पकड़ेंगे।

हालांकि ऑपरेशन सिंदूर को भारतीय सेना ने सफलतापूर्वक अंजाम दिया और पाकिस्तान के कम से कम 9 आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया, लेकिन पहलगाम के दोषियों का कुछ अता-पता नहीं था। ऑपरेशन सिंदूर भी अचानक 10 मई को रोक दिया गया, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया कि मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार की धमकी देकर युद्धविराम करवा दिया है। इस ऐलान के बाद पाक प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ का उनके देश के नाम संबोधन आया, जिसमें शरीफ ने यही जतलाया मानो पाकिस्तान की जीत हुई है। इतना सब हो गया तब जाकर नरेन्द्र मोदी ने देश को संबोधित किया।

इस बीच राहुल गांधी श्रीनगर भी चले गए और बाद में पहलगाम पीड़ितों के परिजनों से मुलाकात भी कर ली। जबकि नरेन्द्र मोदी ने ऐसी मुलाकात के लिए काफी वक्त लिया और वहीं भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सेना पर, सैन्य अधिकारियों पर ऐसी टिप्पणियां कीं कि इसमें अदालत को स्वत: संज्ञान लेना पड़ा। खुद नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह ऑपरेशन सिंदूर को वोट बटोरने के लिए इस्तेमाल किया, उस पर सवाल उठे। मेरी रगों में खून नहीं गर्म सिंदूर बहता है, जैसे घटिया संवाद प्रधानमंत्री ने तालियां बटोरने के लिए इस्तेमाल किए। वहीं डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से 26 बार युद्धविराम का दावा हो चुका है। और भारतीय सेना के अधिकारियों ने ही ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की तरफ से किए गए हमलों पर नुकसान की बात स्वीकार की थी।

अप्रैल से चले आ रहे इस घटनाक्रम को दोहराने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि विपक्ष ने इस दौरान अनगिनत बार यह मांग सरकार के सामने रखी कि इस पर वह साफ-साफ तस्वीर पेश करे, क्योंकि मामला देश की सुरक्षा और सम्मान से जुड़ा है। लेकिन नरेन्द्र मोदी न इस मुद्दे पर बुलाई सर्वदलीय बैठकों में आए, न विपक्ष की मांग पर संसद का विशेष सत्र उन्होंने बुलाया। बल्कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को दुनिया के अलग-अलग देशों में भेज दिया ताकि सरकार का पक्ष दुनिया के सामने रखा जा सके। इन प्रतिनिधिमंडलों के मुताबिक सभी देशों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में साथ खड़े होने का भरोसा दिया है। लेकिन इसके बावजूद वैश्विक बिरादरी में पाकिस्तान को अलग-थलग करने जैसी कोई खबर नहीं आई। बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अनेक मौकों पर पाकिस्तान की तारीफ कर, शाहबाज शरीफ को महान नेता बताया और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को निजी लंच पर भी आमंत्रित कर लिया।

इस पूरे घटनाक्रम में बार-बार ऊंगली मोदी सरकार की भूमिका और नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व क्षमता पर उठती रही, लेकिन सोमवार 28 जुलाई को जब राजनाथ सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की शुरुआत की, तो उनकी आपत्ति विपक्ष के रवैये से थी कि वह सवाल क्यों पूछता है। राजनाथ सिंह ने राम, कृ ष्ण, बुद्ध, सुदर्शन चक्र, 1965, 1971 सबका जिक्र किया, लेकिन विपक्ष के सवालों का सीधा-सीधा जवाब नहीं दिया कि पहलगाम के भीतर तक आतंकी आए कैसे और उन्हें पकड़ा क्यों नहीं गया। ट्रंप के दावों को पहले ही बार में श्री मोदी ने खारिज क्यों नहीं किया। राजनाथ सिंह ने यह जरूर मान लिया है कि 10 मई को पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारत से संपर्क किया और सैन्य कार्रवाई रोकने की अपील की। 12 मई को दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच बातचीत हुई और फिर दोनों देशों ने विराम लगाने का ऐलान किया। अब सवाल यह है कि जब दोनों देशों के बीच सीधी बातचीत हुई थी तो फिर डोनाल्ड ट्रंप के दावों को अब तक खारिज क्यों नहीं किया गया है।

रक्षा मंत्री ने अपनी तरफ से प्रधानमंत्री मोदी का सच्चा प्रतिनिधि बनते हुए विपक्ष को घेरने और मुद्दे पर गोल-गोल बातें करने की पूरी कोशिश की। हालांकि विपक्ष इससे बिना प्रभावित हुए अपने रुख पर अडिग रहा। उपनेता प्रतिपक्ष गौरव गोगोई ने साफ कह दिया कि राजनाथ सिंह ने बैसरन के डर पर कुछ नहीं कहा, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जिम्मेदारी ली, लेकिन गृहमंत्री ने कोई जिम्मेदारी नहीं ली। वहीं जब श्री गोगोई ने प्रधानमंत्री के पहलगाम न जाकर बिहार में चुनाव प्रचार करने की याद सदन को दिलाई तो सत्ता पक्ष ने हंगामा किया और लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि गलत तथ्य नहीं दीजिए।

कुल मिलाकर लोकसभा में जिस तरह ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की शुरुआत हुई, उसमें सरकार के रवैये से एक बार फिर निराशा हुई है कि आम जनता और देश की सीमाओं की सुरक्षा का गंभीर मुद्दा भी किस तरह भाजपा के लिए राजनीति का जरिया बना हुआ है।


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