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आपातकाल का ऐलानिया इज़हार

11 अगस्त का दिन आजादी के बाद देश के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ गया है

आपातकाल का ऐलानिया इज़हार
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हम जानते हैं, वे झूठ बोलते हैं, वे जानते हैं कि वे झूठ बोलते हैं,

वे जानते हैं कि हम जानते हैं कि वे झूठ बोलते हैं

हम जानते हैं कि वे जानते हैं कि हम जानते हैं कि वे झूठ बोल रहे हैं,

लेकिन फिर भी वे झूठ बोलते रहते हैं, और हम उन पर विश्वास करने का नाटक करते रहते हैं

रूसी नोबेल पुरस्कार विजेता, अलेक्सांद्र सोल्झेनित्सिन का यह उद्धरण इस समय भारत की राजनैतिक विडंबना को बखूबी बयान करता है।

11 अगस्त का दिन आजादी के बाद देश के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ गया है। पिछली लोकसभा में मोदी सरकार ने डेढ़ सौ के करीब सांसदों को निलंबित करने का अनूठा रिकार्ड बनाया था। अपने लिए नया रिकार्ड तैयार करने में मोदी सरकार ने सोमवार 11 अगस्त को विपक्ष के सांसदों को बड़ी तादाद में पुलिस हिरासत में लेने का आदेश दिया। इन सांसदों को लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के जुर्म में गिरफ्तार किया गया। क्योंकि पूरे देश में लोकतंत्र को खत्म करने का बुलडोजर मोदी सरकार ने चलाया है, अब उसके सामने विपक्ष तन कर खड़ा हो गया है। सरकार के पास दो ही रास्ते बचे, या तो वह बुलडोजर पीछे करती या फिर विपक्ष को कुचलती। सरकार ने दूसरा रास्ता अपनाया और करीब 3 सौ सांसदों पर पुलिस की सख्ती दिखाई। बता दें कि विपक्ष ने अपने ऐलान के मुताबिक सोमवार को संसद परिसर से निर्वाचन आयोग के दफ्तर तक पैदल मार्च निकाला। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में यह पैदल मार्च निकला। सांसदों की मांग थी कि चुनाव आयोग वोट चोरी पर दिए गए सबूतों को स्वीकार कर जांच करे, वोट चोरी रोकने के लिए कदम उठाए, बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया रद्द करे, क्योंकि उसमें भी तमाम गड़बड़ियां दिख रही हैं।

राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि यह लड़ाई राजनैतिक नहीं है, बल्कि देश की आत्मा यानी संविधान को बचाने की लड़ाई है। क्योंकि संविधान एक व्यक्ति, एक वोट को मान्यता देता है। वयस्क सार्वभौमिक मताधिकार को बचाने की है। आजादी हासिल करने के बाद देशनिर्माताओं ने बड़े परिश्रम से ऐसा संविधान तैयार किया था, जिसमें प्रदत्त अधिकार आजादी के स्वाद को चिरकाल तक बनाए रखें। भारत के लोग जिंदा तो गुलाम भारत में भी थे, लेकिन जिंदगी की गरिमा संविधान ने प्रदान की। जिसकी निगाह में हरेक नागरिक एक समान है, इसलिए सबके अधिकार भी समान हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मत देने का अधिकार ही है, जो लोकतंत्र कायम करता है। लोग तय करते हैं कि उनकी सरकार कैसी बनेगी, किन लोगों के हाथ में शासन सौंपा जाएगा। अगर काम पसंद न आए तो पांच साल के बाद उस सत्ता को पलटने की ताकत है, इतना मजबूत अधिकार संविधान ने दिया। अगर ऐसा नहीं होता तो आज हम रूस, उ.कोरिया या चीन में जो राजनैतिक माहौल देख रहे हैं, कमोबेश वैसा ही हाल देश का बन सकता है कि एक बार सत्ता किसी के हाथ में आई तो फिर हमेशा के लिए उसे हथिया लिया जाएगा।

एसआईआर में लाखों लोगों के नाम काटकर या निर्वाचन सीटों पर फर्जी मतदान करवा कर वोट देने के अधिकार पर ही कैंची चलाई जा रही है। राहुल गांधी ने इसे वोट चोरी कहा है, अखिलेश यादव ने वोट डकैती। इसके सबूत भी जुटा लिए हैं, जिन्हें देखने की जहमत चुनाव आयोग नहीं उठा रहा है। बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मतदाता सूची से काटे गए नामों की लिस्ट और कारण मांगे तो आयोग ने उससे भी इंकार कर दिया कि वह बाध्य नहीं है। ऐसे में चोरी, डकैती, अपहरण जैसे नाम ही याद आते हैं। कायदे से संवैधानिक संस्था की जिम्मेदारी निभाते हुए चुनाव आयोग को खुद विपक्ष की शंकाओं का समाधान करने की पहल करना चाहिए थी। लेकिन यहां आरोप-प्रत्यारोप चल रहा है। भाजपा ऐसे ही वक्त बिताना चाहती है। उसे फर्कनहीं पड़ता कि विपक्ष सदन में आए या नहीं, वह अपनी मर्जी के विधेयक जल्दी से पारित कराना चाहती है। किरण रिजीजू का कहना है कि एक व्यक्ति की नासमझी और एक परिवार के लिए विपक्ष वक्त बर्बाद कर रहा है, लेकिन सरकार को देश के काम करने हैं, इसलिए वह विधेयक पारित करवाएगी। इसे सीनाजोरी भी कह सकते हैं। श्री रिजीजू का इशारा साफ तौर पर राहुल गांधी और गांधी परिवार के लिए है। लेकिन गांधी परिवार की आलोचना करते हुए वे सारे विपक्ष का अपमान कर रहे हैं कि वह वक्त बर्बाद कर रहा है।

84 बरस के शरद पवार, 83 बरस के मल्लिकार्जुन खड़गे दिल्ली की उमस भरी गर्मी में दोपहर 1-2 बजे सड़कों पर बैठे थे। खड़गेजी को पुलिस गिरफ्तार कर थाने ले गई। कई महिला सांसद भी सोमवार को प्रदर्शन में शामिल हुईं। टीएमसी सांसद मिताली बाग और कांग्रेस सांसद संजना जाटव दोनों की ही तबियत भी इस दौरान खराब हुई और उन्हें चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराई गई। डीटीसी की बसों में ठूंसकर सांसदों को दिल्ली पुलिस इस तरह ले गई, मानो ये पेशेवर अपराधी हैं। इससे पहले सुबह ही दिल्ली पुलिस का बयान आया था कि इस मार्च की अनुमति नहीं ली गई है। सवाल ये है कि क्या अब सांसदों को दिल्ली में पैदल चलने के लिए पुलिस की इजाज़त लेनी पड़ेगी। ऐसे में जब राहुल गांधी सवाल करते हैं कि क्या यही लोकतंत्र है, तो कुछ गलत नहीं बोलते हैं। अफसोस की बात ये है कि देश के लोकतंत्र की बदहाली की ये तस्वीरें अब पूरी दुनिया देख रही है।

किसान, छात्र, महिला पहलवान, सरकारी कर्मचारी, और अब सांसद मोदी सरकार के फैसलों के खिलाफ बार-बार सबको सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। और सरकार कह रही है कि विपक्ष चर्चा नहीं चाहता। नरेन्द्र मोदी 1975 के आपातकाल की याद हमेशा दिलाते हैं। क्या अभी जो देश का हाल है वह आपातकाल का खुला इजहार नहीं है। हम जानते हैं कि मोदी जानते हैं कि देश में आपातकाल है, फिर भी वे लोकतंत्र का महिमागान कर रहे हैं और हम उन पर विश्वास कर रहे हैं।


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